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इस जगत् में सम्पूर्णतया स्वतंत्र तो कोई भी नहीं है. जन्म से पहले नौ माह तक माँ के गर्भ की कैद रहती है, जन्म के बाद भी माँ की नज़रबन्दी में दिन गुज़रते हैं, उसके बाद पिता के अंकुश में जीवन रहता है, विवाह के बाद हवाला हस्तान्तरित होता है, पत्नी का बन्धन आता है. बुढ़ापा पुत्रों के बन्धन में कटता है. बताओ ! कहाँ है स्वतंत्रता ? सचमुच जगत् का हर-एक मनुष्य कैदी है.
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