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धर्म तो एक व्यवस्था है. फिर भले ही वह अलग-अलग सम्प्रदायों में विभाजित हो. वास्तविक धर्म का तो एक ही लक्ष्य होता है : प्राणी - मात्र का कल्याण हो, साम्प्रदायिक भेदभाव मलिन मानसिकता के प्रतिफल हैं, आत्म-धर्म का तो कोई भेद नहीं हो सकता.
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