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विद्वान और मूर्ख में इतना ही अन्तर है कि विद्वान बोलने से पहले सोचता है और मूर्ख बोलने के बाद पछताता है. विद्वान की वाणी में विवेक का अंकुश होता है, वह सद्भावना के धरातल पर बोलता है, जबकि मूर्ख की भाषा बेकाबू होती है. वह बोलने के बाद गणित करता है. इसीलिए मूर्ख ठोकरें खाता है जबकि विद्वान अपना पथ बना लेता है.
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