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आस्था की ओर बढ़ते कदम
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स्मारक की स्थपना १०० वीघा भूखण्ड पर की। जिस में स्कूल, समाधि, मंदिर, ध्यान केन्द्र, विशाल पुस्तकालय का हस्तलिखित भण्डार शामिल है । यह भव्य स्थल जैन कला, संस्कृति का जीता जागता उदाहरण है ।
प्रकरण ६
विदेशों में जैन धर्म : एक
क्रांतिकारी परम्परा का सूत्रपात
भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव पर जैन धर्म ने अहिंसा, अनेकांत, व अपरिग्रहवाद के सिद्धांतों के प्रचार के लिए अंतराष्ट्रीय प्रचार की योजना पर ध्यान केन्द्रीत किया। जैन धर्म का प्रचार प्रसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव से अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर तक संसार के कोने कोने में होता रहा है। भगवान महावीर के समय ईरान देश के एक राजकुमार आद्रक ने प्रभु महावीर के चरणों में प्रवज्या ग्रहण की थी। भगवान महावीर के समय अरव देशों में जैन धर्म होने का प्रमाण है। स्वयं भगवान महावीर ने अपने दीक्षा काल के वाद तप करते हुए अनार्य देशों में जैन धर्म का प्रचार किया था। विदेशों मे जैन धर्म के वारे में दिगम्बर परम्परा में तो वडे विस्तार से वर्णन मिलता है ।
वोद्ध ग्रंथों में एक स्थान पर वर्णन आया है कि लंका के अनुराधापुर, में निग्रंथों के विहार का वर्णन है । जब जैन तीर्थंकरों का युग आया था उस समय सफर का साधन पशु द्वारा संचालित वाहन था । भगवान् महावीर पशुओं के इस शोषण के विरूद्ध थे। इस लिए उन्होंने अपने साधु व साध्वियों से इस प्रकार वाहन का प्रयोग करने से रोका। पर
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