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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम राज्य स्तरीय संगठनों को मुख्यालय था, उन में से कुछ ने हम से पत्र व्यवहार किया । पर हमारा दुर्भाग्य था कि हम जैन एकता की बात करते थे वह समाज के सभी लोग अपनी मान्यता के दायरे में उलझे हुए थे। वह न तो हमारी वात ठीक ढंग से सुनते थे, न समझने को तैयार थे। सभी नेता हमारी बात सुनते। सुनने के पश्चात् एक शब्द में उत्तर दे देते कि मीटिंग करके हम आपको बता देंगे। उनका यह उत्तर हमारे उत्साह को कम न कर पाया। हम समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। हमारे लोग ही हमारी बात को ठीक से समझ नहीं पा रहे थे। पर हम काम कर रहे थे । हम ने मीटिंग से पहले समिति का विधान तैयार किया । इस का एक मात्र कारण यह था कि हम जन्म जात नेता न थे ना ही किसी सम्प्रदाय विशेष का प्रतिनिधित्व करते थे। ऐसे में हम इन नेताओं से क्या सहयोग की अपेक्षा कर सकते थे। इन सब बातों के बावजूद हम निरंतर काम करते रहे। हमें प्रवर्तक श्री पद्मचन्द जी महाराज, प्रवर्तक श्री फूलचन्द जी महाराज, श्री रत्न मुनि जी महाराज, साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की प्रेरणा आगे बढ़ा रही थी । वह प्रत्येक कार्य में हमारा हौंसला बढ़ा रहे थे। इन्हीं दिनों हमें हमारी धर्म गुरूणी पंजावी जैन साहित्य की प्रेरिका साध्वी रत्न, उपप्रवर्तनी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का आर्शीवाद प्राप्त हुआ । श्वेताम्बर समाज के प्रमुख आचार्य समुद्र विजय व श्री जय विजय जी हमारी प्रेरणा का कारण वने । तेरापंथ सम्प्रदाय में साध्वी श्री मोहनकुमारी जी महाराज तारानगर हमारा मार्गदर्शन करते रहे । विचित्र स्थिति थी, सभी साधू, साध्वी अपनी सम्प्रदाय मान्यता को एक तरफ कर जैन एकता की प्रेरणा देते थे पर नेता लोग अपनी अपनी डफली अपना अपना राग अलापते थे। यह विचित्र 62
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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