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आस्था की ओर बढ़ते कदम ऋद्धि-सिद्धियों का स्वामी था। वह जैसा रूप या भेष चाहे बदल सकता था अंवड सन्यासी नगर के बाहर आया। उस ने विष्णु का रूप वनाया । चर्तुभुजी विष्णु के रूप को देख नगर वासी उमड़ पडे । विष्णु बने अंबड ने कहा 'जाओ सुलसा को कहा उस के लिए विष्णु साक्षातकार से धरती पर आ गए हैं वह मुझे वन्दना कर अपना जीवन धन्य करे ।
लोगों की भीड़ सुलसा के घर की ओर उमड़ पड़ी। लोगों ने कहा सुलसा तूं धन्य है तेरे कारण हमें भगवान् विष्णु के दर्शन हो गए हैं। तुझे त्रिलोकी नाथ ने याद किया है। तूं चल के उनकी भक्ति कर । सुलसा ने कहा "ऐसे देव को नहीं मानती। यह तो किसी मायाधारी का कार्य है जो मुझे अपने सम्यक्त्व से गिराने आया है। लोगों ने तुलसा श्राविका का उतर मायाधारी विष्णु को दिया। कुछ समय के बाद अंवड सन्यासी ने ब्रहमा का रूप बनाया। सही प्रक्रिया दोहराई गई सुलसा का वही उतर था जो विष्णु के संदर्भ में उसने दिया था। अंवड सन्यासी ने सोचा, जरूर सुलता में ऐसी विशेषता है जिस कारण प्रभु महावीर ने इस धर्म लाभ प्रेषित किया है । यह सामान्य महिला नहीं थी । उस की धर्म के प्रति आस्था देख उस अंवड ने अंतिम तीर छोड़ा। उसने शिव का रूप बनाया । वह सुलसा के दर पर मांगने आया । सुलसा बाहर आई। उसने कहा “तू क्यों लोगों में अपने भ्रम से मिथ्यात्व फैला रहा है। तूं न विष्णु है, न ब्रह्मा, न शिव । तीन लोक के अधिनायक देव क्या ऐसे भागते फिरते हैं तू जो दीखता है वह है नहीं । क्यों लोगों को भ्रमा कर पाप का भागी बनता है। मैं प्रभु महावीर की कृपा से देव का स्वरूप जानती हूं तू धरती का प्राणी है देव नहीं । जो भी बात है प्रत्यक्ष व अभय रूप से कहो। मैं तुम्हारी गलती के लिए तुम्हें क्षमा देती हूं।
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