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आस्था की ओर बढ़ते कदम
दीक्षा का वर्णन है। प्रभु नेमिनाथ के इंतजार में बैठी राजुल को गवान में बैठे दिखाया गया है । १८ से २६वी देहरी के गुम्बजों में कला के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है । देहरी २६ से २७ के मध्य में विशाल हस्तीशाला है। ये संगमरमर के १० सुन्दर हाथीयों की प्रतिमाएं सुशोभित हैं। इस मन्दिर के निर्माताओं ने अपने गुरूजनों की प्रतिमाएं स्थापित की हैं। इस गुम्बज में सुन्दर गहरे जलाशय का कलात्मक दृश्य उभरा हुआ है।
लुणवसही मन्दिर के बर दाई ओर एक दिगम्बर जैन मन्दिर है। जो भगवान कुन्थुनाथ को समर्पित है। वहां से सीढ़ीयां उतरने पर काले पत्थर का कुम्भ स्तम्भ है। संवत १४४६ में इसे मेवाड़ के राणा कुम्भा ने बनवाया था। वहीं दाईं ओर वृक्ष के मध्य में युग प्रधान दादा श्री जिनदत्त सूरी की छत्री है। यहां जैन जगत के महा चमत्कारी दादा श्री जिनकुशल सूरी जी महाराज की चरण पादुका भी स्थापित है ।
पीतलहर मन्दिर :
इस मन्दिर का निर्माण दानवीर सेट श्री भामाशाह ने करवाया था। इस मन्दिर के निर्माण का समय संवत् १३७८ से १३८६ माना जाता है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार गुजरात के सेट ने करवाया था । मन्दिर में पांच धातु से निर्मित प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव की प्रतिमा विराजमान है। पांच धातु का परिकर आठ गुणा सवा पांच फुट का है । इस प्रतिमा में ज्यादा मात्रा पीतल की है। इसी कारण इसे पीतलहर कहते हैं । इस मन्दिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा संवत् १४६८ में आचार्य श्री लक्ष्मी सागर सूरीश्वर जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुई थी। इस मन्दिर में
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