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==ાણ્યા છો ગોર અને જન્મ में अलाउदीन खिलजी ने इस जिनालय को काफी नुकसान पहंचाया। इस क्षति की पूर्ति मंडोर (जोधपूर) के बीजड़ व लालक भाईयों ने करवाई। उन्होंने इन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया।
मन्दिर के मुख्याद्वार में प्रवेश करते ही संगमरमरी भव्य कलात्मक छतों, गुम्बजों, तोरण द्वार को देख कर मन प्रसन्न हो जाता है। अलंकृत नकाशी, शिल्पकला की भव्यता
और सुकोमलता की झलक यहां हर तरफ दृष्टि गोचर होती है। इस मन्दिर में ५७ देवरीयां हैं। जिनमें विभिन्न तीथंकरों की प्रतिमाएं परिवार सहित विराजमान हैं। प्रत्येक देहरी के नक्काशीपूर्ण द्वार के अन्दर दो दो गुम्बज हैं। जिनकी एतों पर उत्कीर्ण शिल्पकला दर्शकों को अभिभूत करती है।
मन्दिर के दसवीं देहरी के वाहर २२ तीथंकर नेमिनाथ के जीवन के दृश्य अंकित हैं। मुख्य द्वार से प्रभु नेमिनाथ की वाराज का दृश्य व कृष्ण की जल क्रीडा का उत्कीर्णन हुआ है। रंगमंडप में सप्या, सरस्वती, लक्ष्मी व भरतवाहुवली वृद्ध का दृश्य, अयोध्या व तक्षशिला के दरवार दर्शनीय हैं।
वाईसवी व तेईसवी देहरी के बीच एक गुफानुमा मन्दिर है। जिस प्रथम तीर्थकर प्रभु आदिश्वर नाथ की शयावणीय प्रतिमा स्थापित है। वहीं प्रतिमा माउंट आबू में विमल शाह को प्राप्त हुई थी। उन्हें माता अंविका ने आदेश दिया था जिस के फलस्वरूपं उन्होंने यह प्रतिमा भूमि खुदवा कर निकाली थी। जव यह प्रतिमा प्रकट हुई तो ब्राह्मणों ने इस स्थान पर जैन मन्दिर बनने की आज्ञा प्रदान नहीं की। इस का कारण इस तीर्थ का ब्राह्मण तीर्थ होना था। विमलशाह मंत्री था। वह चाहता तो राजा से मन्दिर की आज्ञा जारी करवा सकता था। परन्तु विमलशाह मंत्री व
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