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=ામ્યા હો ગોર વકો જન્મ दिल्ली से सावरमती एक्सप्रेस पकड़ कर अगले दिन ३ वजे अहमदाबाद पहुंचे। ट्रेन का सफर बच्चों की दृष्टि से सुविधाजनक होता है। वैसे भी इतना लम्बा वस का सफर हमारे लिए कटिन था। हम दोपहर के पश्चात अमहदावाट में लाल वाग स्थित मुनि श्री जय चन्द्र के प्रवास स्थल पर पहुंचे। कुछ समय के दर्शन करने के पश्चात् हमारी टहल्ने की व्यवस्था एक अच्छे परिवार में कर दी गई। मुझे गोविन्दगढ़ से चलते समय मेरे धर्म भाता श्री रविन्द्र जैन ने कहा था कि अगर समय मिले तो पालीताना की यात्रा भी कर लेना। मैंने अपने धर्मभ्राता को उत्तर दिया “अगर प्रभु ऋपभटव ने बुलाया तो मैं रूकने वाला कौन होता हूं।''
यह वात महज इत्फाक थी। मैंने इतनी लम्बी यात्रा की आज्ञा घर वालों से प्राप्त नहीं की थी। पर यह बुलावा तो आदिश्वर दादा का था। शत्रुजय तीर्थ के दर्शन को तीन लोक के देवता तडपते हैं। फिर मेरी क्या औकात है ? मैं तो प्रभु का साधारण भक्त हूं। उसका दास हूं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे वीतराग परमात्मा, पांच महाव्रती गुरु, सर्वज्ञ परमात्मा का धर्म प्राप्त हुआ है। उसकी मौज में मेरी मौज है। अहमदाबाद पहुंचा कर, वहां मैंने सर्वप्रथम अपने गुरू. श्री जय चन्द जी को अपना पंजाबी साहित्य समर्पित किया। उन्होंने मुझ से मेरे धर्मभाता रविन्द्र जैन की कुशलता पूछी। मैंने सारी गतिविधियों से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने पंजावी साहित्य की प्रेरिका साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के कायों का अनुमोदन किया। फिर मैंने दो दिन रुक कर अहमदावाद के दर्शनीय स्थल देखे। इन में प्रमुख हटो सिंह का जैन मन्दिर, उसकी कला मेरे लिए अवर्णनीय हैं।
अहमदावाद देखा जाए तो धनवानों का शहर है। सम्पन्ता व सादगी गुजराती शैली का महत्वपूर्ण अंग है! जैन
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