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વાસ્યા હલ કોર કઠો દબ रूपी त्रिवेणी इस मन्दिर के कण कण में प्रकट होती है। देव, गुरू व धर्म की त्रिवेणी इस मन्दिर के भक्तों के हृदय पटल से प्रफुटित हो कर सम्यकत्व रूपी समुंद्र को जन्म देती है। यह तीर्थ यात्रा हमारी अर्हत प्रभु के प्रति सहज समर्पण व अपने धर्म भाता की इच्छा को परिपूर्ण करती है। मुच्छैला श्री महावीर जी :
राणकपूर में हम ने दोपहर का खाना खाया। पुनः सभी मन्दिरों में पूजा अर्चना वन्दन किया। फिर राणकपूर तीर्थ को वन्दन नमस्कार किया। वापिस अपनी जीप में राकर हुए। वह भी महज इतफाक था कि हम यहां पहुंचे तव भी भयंकर गर्मी में थे। वापसी सफर भी इसी गर्मी में कर रहे थे। कुछ किलोमीटर चलने के पश्चात हम एक नाले के उपर से गुजर रहे थे यह बरसाती नाला है। इस नाले के एक ओर सड़क जाती थी। उस सड़क पर एक साईन बोर्ड लगा था। “तीर्थ राज श्री मुच्छेला महावीर जी"
इस वोर्ड को पढ़ा। मन मे उत्सुकता जागी। ड्राईवर के इस स्थान के बारे मे पूछा। ड्राइवर ने उत्तरं दिया “साहिब ! यह तीर्थ प्रसिद्ध चमत्कारिक तीर्थ है। मन्दिर चाहे छोटा है पर प्राचीन है। यह तीर्थ की यात्रा भी आपको करनी चाहिए।"
मैने अपने धर्म भ्राता रविन्द्र जैन से इस यात्रा के बारे मे विमर्श किया। उसने मेरी बात में हामी भरी। करीव ५ किलोमीटर चलने पर हम एक गांव में पहुंचे। इस गांव में एक भव्य प्राचीन मन्दिर के दर्शन हुए। हम मन्दिर में पहुंचे। गांव होने के कारण यहां यात्री तो आते हैं, पर टहरते कम हैं। हम इस मन्दिर में पहुंचे। मन्दिर के मुख्य पुजारी को इस मन्दिर के इतिहास के बारे में पूछा। पुजारी ने कहा “यह
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