________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम
पधारे। प्रभु ऋषभदेव का समोसरण लगा। माता मरुदेवी हाथी पर बैठी समोसरण में आ रही थी। रास्ते में सोचती जाती "मेरा पुत्र ऋषभ कोई वडा आदमी वन गया है, जो मेरी खबर नहीं ले रहा। मैं सब से उसे उपाम्लभ दूंगी कि उसने मुझ वुढीया की खवर सार क्यों नही ली।" माता क्या जाने कि उस का वेटा तो केवली वन कर तीन लोक का नाथ प्रथम तीर्थंकर वन चुका है । संसार को मोक्ष मार्ग का रास्ता बता रहा है। उस की धर्म दर्शना तो मैं देव, मनुष्य, पशु सभी उस का उपदेश सुनने आते हैं।"
माता मरूदेवी समोसरण के करीब पहुंची। समोसरण में देव, राजा, मनुष्य व स्त्रियों के समूह उस की देशना सुन रहे थे। माता मरूदेवी को समोसरण में पहुंचते ही रागद्वेष समाप्त हो गया। हाथी पर बैठे बैठे वह सर्वज्ञ सर्वदर्शी वन गई। श्वेताम्बर जैन मान्यता के अनुसार इस युग में प्रथम मोक्ष जाने वाली वह पहली जम्वु दीप भरत क्षेत्र की पवित्र आत्मा श्री ।
उसी माता मरूदेवी को इस मन्दिर में हाथी पर बैठे दिखाया गया है। इसी के पास एक विशाल तल घर है । हमलावरों से यहां प्रतिमाओं को छिपा कर रखा जाता था । मूल गर्भ गृह की दाहिनी ओर पार्श्वनाथ की एक ऐसी प्रतिमा है जिस के सिर पर एक हजार नागफण हैं। ऐसी मूर्ति सारे भारत में एक ही है। इस मूर्ति की प्रमुख विशेषता यह है कि सभी सर्प एक दूसरे से गूंथे हैं। इनका अंतिम भाग अदृश्य हैं ।
यहां परिकल्पित गुम्वजों में एक ऐसा गुम्वज है जिसे अगर ध्यान पूर्वक न देखा गया, तो यात्री उस गुम्बज को मन्दिर की कला समृद्धि में वाधक वनेगा । मन्दिर के उपनी भाग में निर्मित यह गुम्बज वास्तव में शंख मण्डप है।
443