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- आस्था की ओर बढ़ते कदम पिछडापन दूर किया। सारे भारत की उन्होंने २ से ज्यादा यात्राएं की। तेरापंथ सम्प्रदाय में उन्हें वृद्ध साधुओं की सेवा, ममुन केन्द्र की स्थापना, संघ एकजुटता, अणुव्रत अन्दोलन, प्रेक्षा ध्यान व समण समणी वर्ग की स्थापना जैसे स्वर्णिम कार्य किए। इन कार्यों ने इन्हें अंर्तराष्ट्रीय संत व जैन धर्म का प्रभावक आचार्य बना दिया। उन्होंने अपने साधुओं व साध्वियों को ज्ञान, कला व धर्म प्रचार के कार्य में लगाया। अणुव्रत के माध्यम से तेरापंथ साधु-साध्वीयां स्कूल जैल, कालेज व खुले मंच द्वारा नैतिकता का अभियान चलाने लगे। इस अभियान को भारत के हर राष्ट्रीय नेता ने सराहा। वही नहीं उन्होंने समाज की कमजोरी जैन एकता की और ध्यान दिया। इस कारण सभी जैन सम्प्रदायों के साधू साध्वीयां इकट्टे प्रवचन करने लगे। भगवान महावीर के २५०० साला निवाण उत्सव पर उन्होंने जैन विश्वभारती लाडनू (विश्वविद्यालय) की स्थापना की। यह विद्यालय अंतराष्ट्रीय स्तर पर धर्म का प्रमुख शिक्षण संस्थान है। विदेशों में धर्म प्रचार के लिए उन्हें.ने समण व समणी वर्ग की स्थापना की है। यह वर्ग साधु व गृहस्थ के वीच सेतु का कार्य करता है। इनका आहार, विहार व निहार खुला है। वाकी चर्या साधुओं जैसी है। आप ने ध्यान की विधि प्रेक्षा ध्यान का विकास किया, यह विधि पहले लुप्त हो चुकी थी।
आचार्य तुलसी हिन्दी, राजस्थानी, प्राकृत व संस्कृत के लेखक थे। उन्होंने आगम वाचना का कार्य सम्पन्न किया। फिर सभी आण्म शुद्ध पाठों सहित प्रकाशित किए। उन्होंने तेरापंथ संबंधी फैले कई भ्रमों को दूर किया। माता जी, भाई साहिव, व बहन दीपा ने संयम ग्रहण किया।
ऐसे क्षेत्र जहां जैन धर्म को कोई नहीं जानता था वहां उन्होंने खुले प्रवचन स्वयं किये। साधु साध्वीयों को ऐसा
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