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________________ तीर्थ यात्रा के लिए प्रेरणा दी। इन तीर्थ यात्राओं से इतिहास, पुरातत्त्व का ज्ञान तो प्राप्त हुआ ही, साथ में धर्म के प्रति श्रद्धा में बढ़ोत्तरी भी हुई। आस्था के कारण धर्म तत्व को समझा । अहिंसा, अनेकांत व अपरिग्रह का पाठ पढ़ा। इस आस्था के सफर को मैंने जिस प्रकार तय किया है उसका वर्णन मैंने संक्षिप्त में लिखने की चेष्टा की है। जहां तक संस्थाओं का संबंध है इनका निर्माण व इनसे जुड़ना दोनों मेरी आस्था के प्रमुख अंग रहे हैं। संस्थाएं धर्म प्रचार में प्रमुख स्थान रखती हैं। संस्थाओं के माध्यम से ही अपने साहित्य का प्रचार करना सरल होता है । आर्शीवाद : मैं शुरू से ही इन घटनाओं को अपनी डायरी में लिखता रहा हूं। मेरी इन डायरीयों का सम्पादन मेरे धर्मभ्राता श्री रविन्द्र जैन, मालेरकोटला ने किया है । यह मेरा समर्पित शिष्य है । इस नाते मैं अपने धर्मभ्राता को आर्शीवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूं। इन डायरीयों का श्रम से सम्पादन करते हुए इसने मेरे विचारों को ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया है। मैं पुनः अपने शिष्य को अपने रिश्ते अनुसार आर्शीवाद देता हुआ इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। मेरा धर्म भ्राता पिछले ३४ वर्षों से मेरे धर्म प्रचार की यात्रा, लेखन, सम्पादन में सहायक बना है । मैं आशा करता हूं कि भविष्य में भी यह मेरे प्रति समर्पित भाव में रह कर अपना धर्म कर्तव्य पालन करता रहेगा। ऐसा सहज समर्पित जीवन आस्था से ही प्राप्त होता है 1 प्रस्तुत पुस्तक का नाम मैंने आस्था की ओर बढ़ते कदम रखा है । यह कृति आस्था की कहानी है। मैं
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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