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- आस्था की ओर बढ़ते कदम नगर का प्राचीन नाम चांदनपुर था । यहां मीणा जाति का एक गवाला रहता था । वह सरलात्मा व प्रभु भक्त था । उसके पास एक गाय थी, वह गाय अन्य पशुओं के साथ चरने एक टीले पर जाती थी । वह गाय जव शाम को वापिस आती तो उसके स्तनों में दूध गायब होता । इसका कोई कारण उस गवाले की समझ में नहीं आ रहा था । इस कारण गवाला संशय में पड़ गया । आखिर दूध की चोरी कौन करता है ? इसकी पड़ताल करनी चाहिये । गवाला इसी सोच में अगली सुवह उठा । उसने उस गाय का पीछा किया, गाय एक टीले पर पहुंची । गाय के स्तन पर दूध झरने लगा, गवाला हैरान हुआ । फिर चमत्कार के वारे में उसने सोचना शुरु किया । इस टीले में अवश्य ही कोई खजाना छुपा है । इसी कारण गाय ने चमत्कार दिखाया है । गवाला घर चला गया । उसने सोचा कि मैं कल खुदाई करूंगा, खजाने की तलाश करूंगा ।
ग्वाला रात्रि को सोकर सुवह जागा । अगली सुवह उसने सारा टीला खोदा, पर कहीं कुछ न मिला । फिर थक कर घर आया । अगली रात्रि को स्वप्न में उसे आकाशवाणी हुई, "टीले को धीरे से खोदो । इसके गहरे में प्रभु प्रतिमा है, उसे आराम से निकाल लेना ।"
आकाशवाणी सुनकर गवाला प्रसन्न हुआ । उसने देववाणी के अनुसार कार्य प्रारम्भ किया । भूगर्भ से भगवान महावीर की सुन्दर प्रतिमा निकाली । गवाले ने उस प्रतिमा को एक झोंपड़ी में स्थापित कर दिया । उसी गांव में कुछ जैन श्रावक आये । उन्होंने इस चमत्कारी प्रतिमा की चर्चा सुनी । जव वह प्रतिमा वाले झोंपड़े में पहुंचे, प्रतिमा के दर्शन उन्हें हार्दिक प्रसन्नता हुई । उन्होंने गांव वासियों को वताया "यह प्रतिमा भगवान महावीर की है, हम इसकी पूजा
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