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- आस्था की ओर बढ़ते कदग है । इस मन्दिर जी में पहुंचकर यात्री स्नान करते हैं । हमने यहां स्नान किया, पुनः पूजा के वस्त्र धारण प्रभु पार्श्वनाथ के मंदिर आये । यह स्थान परम शांति प्रदान करने वाला है । यहां पहुंचकर लगता है कि हमने जीचन का महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरा कर लिया है, यह पर्वत स्वर्ग का मनोरम दृश्य प्रतीत होता है । मन्दिर जी में श्री सांवलिया पार्श्वनाथ अपनी आभा के साथ विराजमान हैं । आसपास शासनदेव, शासनदेवीयों की प्रतिमाएं हैं, यह मन्दिर पूर्णरूप से संगमरमर का बना हुआ है, मन्दिर भव्य है, मनोरम है । यात्रियों को आकर्षित करता है । बड़ी बात यह है कि सारे पर्वत पर यहीं एक मन्दिर है । बाकी तो टोंके हैं । - हमने जलकुंड के पवित्र कुंड को देख, यहां आसपास के वन प्रकृति सम्पदा से भरे पड़े हैं । यहां औषधियों के भण्डार है । यह औषधियां स्थानीय आदिवासी लोग धर्मशाला में वेचते हैं । हर विमारी की औषधि है । यहां की औषधियां भी चमत्कारी हैं । स्नान के बाद हमने पुजारी की सहायता से पूजा सम्पन्न की । फिर हमें इसी पुजारी ने खाना बनाकर खिलाया । यहां के पुजारी भक्तों का विशेष सम्मान करते है। । प्रभु पार्श्वनाथ की साक्षी से मैंने अपने धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन को शाल ओढ़ाया। यह उसकी समर्पित आत्मा को महत्वपूर्ण भेंट थी ।
फिर मन्दिर जी में हम कुछ समय रुके । रुकने के वाद हमने पुनः यात्रा प्रारम्भ की, पर अभी दो टोंक ही सम्पूर्ण की थी कि आसमान पर घनघोर वादल छा गयें । इन वादलों में मधुवन के मन्दिरों का समूह, अपनी अनुपम छटा विखेर रहा था । अभी कुछ ही दूर चले होंगे कि वर्षा शुरु होने लगी । पहाड़ों में वर्षा इसी तरह अचानक ही होती है, पर ज्यादा ऊंचाई के कारण यह वर्षा तूफान के साथ आई ।
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