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आस्था की ओर बढ़ते कदम
नौकरी :
१६६८ में मैने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के मान से वी. ए. की परीक्षा सरकारी कालेज, मालेरकोटला से उत्तीर्ण की। परीक्षा समाप्त होते ही मुझे पंजाव लैंड मोर्टीज बैंक मालेरकोटला में नौकरी प्राप्त हो गई ।
यह नौकरी मेरी अहिंता की दूसरी परीक्षा थी । यह बैंक किसानों का बैंक है। मुझे इस माध्यम से अपने किरून भाईयों की सेवा का अच्छा अवसर मिला । यह बैंक का कार्य पग पग दोषपूर्ण था जिस से मुझे वचना था। इस स्थान पर भ्रष्टाचार व्याप्त था । शराव व मांस का सेवन आ था। इन सबसे मैने स्वयं को कैसे बचाया, यह तो मैं स्वयं भी नहीं जानता। पर आज जब अपने १७ वर्ष बैंक में गुजरे सालों के वारे में सोचता हूं तो पाता हूं कि इस हालत में मैं किसी महापुरूष के आर्शीवाद से ही स्वयं को बचा पाया हूं, नहीं तो मैं आज ऐसा ना दीखता, जैसा दिखाई देता हूं। यह बैंक मेरे लिए तीर्थ स्थान से कम नहीं रहा । जहां से मैने बहुत कुछ पाया। बैंक के समय से ही धर्म की श में आ चुका था और यह भी सत्य है कि जो धर्म की श में आता है, धर्म उस का शरणागत बनता है । यह बैंक मेरी कर्म स्थली व धर्म स्थली वन गया। सबसे बड़ी वात मैं हर तरह के लोगों के परिचय में आया । मुझे व्यवहार धर्म का ज्ञान हुआ ।
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