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- आस्था की ओर बढ़ते कदम में कुछ झोंपड़ियां डाली गई । चोर, डाकू का आतंक हर समय रहता था, पर साधु बन्दना ने कुछ ही समय से आसपास के गांव के लोगों को अपना लिया । अब वह उनकी धर्म की माता है । तांगा गर्म पानी के झुंडों से आगे बढ़ रहा था । रास्ते में गुरुद्वारा साहिब के दर्शन किये, फिर हम सोनभंडार गुफा की ओर बढ़ने लगे । सोन भंडार :
' सोन भंडार गुफा एक जंगल में पड़ती है । इस गुफा के आगे का हिस्सा गिर चुका है । अन्दर के हिस्से में २४ तीर्थकरों की प्रतिमाएं अंकित हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि इस गुफा के पास ही एक और गुफा जैन मन्दिर है, जो मात्र खण्डहर है, वहां पहुंचने का स्थान लम्वा है । यह चौथे पहाड़ की तलहटी में है । इस गुफा का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है । किवंदती है कि जब राजा कोणिक ने अपने पिता श्रेणिक को कैद कर लिया, तब कोणिक की माता
चेलना ने अपना खजाना इस गुफा में छिपाकर रखा, उसे विशाल पत्थर से बंद कर दिया और ऊपर गुप्त लिपि में एक शिलालेख लिखवा दिया । एक शिलालेख उस पत्थर पर है जिसकी लिपि पढ़ी नहीं गई है । इस गुफा का सम्बन्ध गणधर गौतम से बताया जाता है । एदी तक इस गुफा में अनेकों मूर्तियों का निर्माण किया था । लोगों का मानना है कि इस गुफा में रानी चेलना ने सोना ठिपाकर रखा है ।
सोनभंडार गुफा देखने के बाद हम बाहर सड़क पर आये । वर्षा का वेग अचानक आया । उस समय हमें इस गुफा में शरण लेनी पड़ी । वापसी पर हमने एक और . इतिहासिक इमारत का अवलोकन किया । उस इमारत का नाम था मणिकार मट । अव यहां एक स्तम्भ ही है जिसे छप्पर से सुरक्षित किया गया है । यहां दिशाल खण्डहर हैं ।
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