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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम यह मेरे बचपन की अनुभूतियों के कुछ अंश हैं। अहिंसा का बीजारोपण : श्रमण भगवान महावीर जिस धर्म को उतकृष्ट मंगल कहा है । वह धर्म कौन सा है अहिंसा, संयम व तप । जो इस धर्म का पालन करता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। ऐसा श्री दशवेंकालिक सूत्र का कथन है । श्री सूत्रकृतांगसूत्र में श्रमण भगवान महावीर ने अहिंसा को भगवती कहा है । । इसी तरह प्रश्न व्याकरण सूत्र में अहिंसा के लिए अनेकों पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग हुआ है। महाभारत में महार्षि वेद व्यास जी ने अहिंसा को परम धर्म कहा है। इस्लाम में परमात्मा को रहम करने वाला रहीम कहा गया है । वोद्ध धर्म व ईसाई धर्म मे करूणा व सेवा का महत्त्वपूर्ण स्थान है । मध्यकाल में अनेकों भक्त हुए। जिन्होंने अहिंसा का प्रचार किया । अहिंसा को पाप कृत्य घोषित किया । वर्तमान समय में अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा को प्रमुख स्थान महात्मा गांधी ने दिलाया। उनकी अहिंसा को गांधी दर्शन के नाम से जानते हैं। बचपन से ही मुझे जिस बात से नफरत रही है वह है हिंसा । हिंसा कहीं भी हो, कैसी भी हो, हिंसा है। हिंसा अनुमोदनीय नहीं हो सकती। यही कारण था कि बचपन में जब कभी मैं बाहर खेलने जाता तो पाता कि कुछ लड़के गुलेलवाजी करते थे। वे छोटे पक्षियों का बिना कारण शिकार करते थे। मुझे ऐसे शिकारीयों से नफरत थी । ऐसी हिंसा मेरे मन में कई तरह के प्रश्न उत्पन्न करती थी । मैं सोचता था कि इन निरिह प्राणीयों को बिना दोष क्यों सजा मिल रही है । इन छोटी छोटी घटनाओं ने मेरे बाल मन पर अहिंसा के 25
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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