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आस्था की ओर बढ़ते कदम
जैसी औरत के घर पधारे, मुझे आपने सम्मान दिया, मैं आपको कुछ देना चाहती हूं ।
महात्मा बुद्ध ने कहा, "देवानुप्रिया ! जो देना है, संघ को दो, संघ को दिया दान मुझे स्वयं मिल जाता है । आम्रपाली बोली, "मैं अपना उद्यान संघ को उपहार स्वरूप देना चाहती हूं, मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार करें ।" बुद्ध ने यह भेंट स्वीकार की । अव जव भी महात्मा बुद्ध पधारते तो इसी उद्यान में ठहरते थे । यह उद्यान के खण्डहर बहुत विशाल भूखण्ड में फैले हुए हैं । इसमें से कुछ स्थान पर इसकी खुदाई थी जिसमें महल के खण्डहर भी मिले हैं ।
बौद्ध भिक्षुओं के रहने के प्रचीन विहार के खण्डहर भी देखे । यहां सारी सम्पदा लाल पत्थर की बनी हुई है । इन सव को कैमरे ने कैद किया । इस सारे सफर में मेरा धर्म भ्राता रवीन्द्र जैन मेरे साथ साये की तरह रहा । मेरा धर्म आता मेरी हर आशा पूरी करने में तत्पर रहता है। जहां समपर्ण है, वहां धर्म है । धर्म का सहज रास्ता सहज समर्पणं है ।
शाम हो चुकी थी, वस का समय नहीं था, हम घूम चुके थे । वैशाली के इतिहासक स्थल पर हमें शीश झुकाने का सुअवसर मिला । जन्म स्थान का उद्घाटन भारत के प्रथम राष्ट्रपति बावू राजिन्द्र प्रसाद जी ने किया था । प्राकृत हिन्दी, अंग्रेजी भाषा में एक शिलालेख लगा है, इस स्थल के पास वनिया गाव है, जो प्राचीन वाणिज्य गांव कहलाता था । इस नाम के कई गांव जैन इतिहास में मिलते हैं । हमने एक जीप ली, यहां जीप की व्यवस्था और ढंग की है, यहां ड्राइवर के साथ अंगरक्षक भी हथियार सहित चलते हैं | गाड़ीयां भरकर चलती हैं । हम पटना लौटे, हमें पटना में आकर पता चला के वैशाली में इतनी देर से आना जान
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