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आस्था की ओर बढ़ते कदम घटनाओं की साक्षी यह गंगा है । हमने बस द्वारा रास्ता तय करने का निश्चय किया क्योंकि पुल के कारण वैशाली का रास्ता कम हो गया था । यह पुल भारत की प्रकृति का प्रतीक है । वैशाली अव तो जिला वन चुका है । उन दिनों मुजफ्फरपुर जिले में यह नगर पड़ता था । हम भव्य पुल के माध्यम से गंगा नदी पार कर रहे थे। हमें गंगा की विशालता देखने का प्रथम अवसर था । यही गंगा नदी थी जिसे नाव द्वारा पार करते समय प्रभु महावीर को एक देव ने कष्ट पहुंचाया था । तब मल्लाह ने कहा था कि इस महापुरुष के कारण गंगा का तूफान हमारा कुछ नहीं विगाड़ सकेगा । प्रभु महावीर की कृपा से सभी यात्री कुशलतापूर्वक किनारे पर लग गये थे ।
पुल पार करते ही हाजीपुर थाना आता है । इससे कुछ किलोमीटर ही वैशाली की भव्यता के दर्शन होते हैं । हमारा सामान भी हमारे साथ था । अभी तय नहीं था कि हम कहां रुकेंगे । हम अव वैशाली में थे, सबसे पहले हम इतिहासकारों द्वारा मान्य कुण्डग्राम में वह स्थल पर पहुंचे जिसे भारत सरकार प्रभु महावीर की जन्म भूमि घोषित कर चुकी है । कहते हैं इस स्थान को लोगों ने संभाल कर रखा है । इस भूमि पर कभी हल नहीं चलाया । यह खोज ७० वर्ष की है । वैसे श्वेताम्वर व दिगम्बर अपना-अपना जन्म स्थान अलग मानते हैं । इसी कारण यहां एक दिगम्बर मन्दिर है । जिसमें पोखर से निकली प्रभु महावीर की काले रंग की प्रतिमा विराजमान है । यही भारत सरकार स्थापित अहिंसा प्राकृत जैनशोध संस्थान है । जैन देश-विदेश में विद्वान करते हैं । सुन्दर परिसर है, हमने अपना पंजावी साहित्य यहां के पुस्तकालय को भेंट किया, छोटा सा बाजार है जहां सब्जी बेचने वाले बैठे थे ।
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