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आस्था की ओर बढ़ते कदम
बहुत कदर करते थे। उपने निजी मामलों में वे उनकी राय लेते थे ।
हमारे पुरखे व मेरा जन्म स्थल :
मैने सुना है कि हमारे पुरखे पीछे से रामपुर ( मलौद) से आये थे। हमारा एक बुजुर्ग अपने ननिहाल कुनरा आया। फिर यहीं वस गया। हम कुनरा वाले कहलाने लगे। यह गांव संगरूर वरनाला रोड पर २ किलोमीटर की दूरी पर सड़क से हट कर है । शहरी सभ्यता के प्रभाव से हमारा गावं काफी बचा हुआ है। इसी गांव में मेरे बाबा श्री नाथ मल जी व दादी दुर्गा देवी रहते थे । उन के दो सपुत्रों में मेरे पिता श्री स्वरूप चन्द जैन छोटे हैं। हमारा गांव सभ्यता संस्कृति व परम्पराओं का जीता जागता प्रमाण है । गांव मुख्य मार्ग पर होने के कारण जैन साधुओं का आगमन रहता है। लोग सब धर्म का आदर करते हैं। इसी कारण गावों में मन्दिर, गुरूद्वारा व डेरा है। गांव का वातावरण शांत है। भूमि उपजाउ है । सरलता के दर्शन हर स्थान पर हैं। इस गांव के प्रमुख मेरा वावा रहे। उन्होनें जीवन
में अंतिम क्षणों में भी इस गांव में विताए । हालांकि उनका समस्त परिवार के लोग धूरी आ गए थे। पर उन्होंने गांव व गांव वासियों को नहीं छोडा । मेरे बावा सहज रूप से जैन साधूओं का बहुत सन्मान देते थे। उन्हें सच्चे साधू मानते थे । उनका दिखाया रास्ता आज भी हमारे परिवार के लिए आदर्श है। उनका कठिन अनुशासन व प्यार दोनों एक साथ अपनी संतान को मिले। उनके संस्कार आज भी हमारे परिवार में सहज प्राप्त होते हैं । इसी संस्कार युक्त परिवार में मेरा जन्म १० नवंबर १६४६ को माता लक्ष्मी देवी जैन द पिता श्री स्वरूप चन्द जैन के यहां पक्की गली धूरी (पंजाब) में हुआ। मैं अपने माता-पिता की तृतीय संतान हूं। मेरे से
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