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= आस्था की ओर बढ़ते कदम जितेन्द्र जैन वाडमेर का अनुपम सहयोग हमें मिला। उन्होंने परिपत्रं की भाषा बनाई। यह परिपत्र हम दोनों की ओर से समस्त राजनेतिक नेताओं, जैन धर्म के विद्वानों व श्री संघों को जारी किया गया। इस अंग्रेजी परिपत्र के साथ साध्वी श्री स्वर्ण अभिनंदन ग्रंथ का परिचय लगाया गया। इस परिचय में उनका संक्षिप्त जीवन, दीक्षा प्रसंग, साहित्य कार्य, समाज सुधार के कार्य का परिचय लिखा गया था। इस परिपत्र के वहुत अच्छा परिणाम निकला। हमें देश के विभिन्न नेताओं के संदेश प्राप्त होने लगे। साधू-साध्वीयों के सत्मरण लेख आने लगे।
- इस ग्रंथ में शोध निबंधों के लिए आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज का सहयोग हम नहीं भूला सकते। उन्होंने अपने संपर्क के लेखकों का अभूतपूर्व सहयोग दिलवाया। हमारा संपर्क कुछ भारतीय व विदेशी लेखकों से था। उन सव के शोध निबंध हमें प्राप्त होने लगे।।
हमें भी अपनी ओर से एक शोध निबंध लिखना था। साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज पर हमने अलग से लिखना था। जो कि सस्मरण की तरह थे। अब हमारे मालेरकोटला घर पर रोजाना डाक आने लगी। कुछ निबंध अम्बाला में भी आने लगे, क्योंकि परिपत्र पर वहां का पता भी था।
अभिनंदन ग्रंथ का कार्य तेजी से चलने लगा। एक तरफ अर्थ व्यवस्था का प्रबंध हो रहा था दूसरी ओर जैन जगत के विद्वानों के लेखों का प्रबंध करने में हम जुट गए। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज ने डा० तेज सिंह गौड़ से इन के माध्यम से हमें मध्य प्रदेश, गुजरात, उतरप्रदेश, दिल्ली के लेखकों ने शोध निबंध प्राप्त होने लगा। यह निबंध हर विषय पर थे। इसी समय अर्हत वचन के
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