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आस्था की ओर बढ़ते कदम है । उस श्रद्धा से वह धर्म रूपी सुन्दर लक्षण वालों सम्यक्त्व को प्राप्त करता है, जो मोक्ष व सद्गति को प्राप्त करता है । इस के विपरीत मिथ्यात्वी जीव जो शंका के कारण ना तो स्वयं कुछ प्राप्त कर सकता है न उस का जीवन धर्म के प्रति जागरूक हो सकता है। ऐसा श्रद्धाहीन व्यक्ति की आस्था कहीं नहीं टिकती। वह मिथ्यात्व के कारण संसार समुद्र में भटकता रहता है ।