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-રાસ્યા ગોર વહd o૮મ सैशन जज श्री हरिचन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुआ। आचार्य श्री को भव्य आसन पर बैठाया गया। सैंकडों चादरें उनके आचार्य पद के अनुमोदन हेतु श्री संघ ने उन्हें भेंट की।
इस अवसर पर आचार्य श्री विमल मुनि अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन श्री मोदी ने किया। उन्होंने ग्रंथ को सिर पर धारण कर, महाराज श्री को भेंट किया। इस ग्रंथ की प्रशंसा विद्वत जगत में वहुत हुई। यह ग्रंथ देश विदेश में पहुंचा। यह ग्रंथ हमारे लिए प्रथम अनुभव था। इस ग्रंथ के सम्पादन से हमें जैन धर्म पर नई बातों का पता चला। हमारा द्विानों से परिचय बना। यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। महाराज श्री का आशीवाद प्राप्त हुआ। निरयावलिका सूत्र आदि पांच उपांग ६:
निरयावलिका सूत्र का हमारे द्वारा किया पंजाबी अनुवाद अभी अप्रकाशित है। जब हम निरयावालिका सूत्र की बात करते हैं तो इस के साथ ४ अन्य उपांग हैं। इस तरह निरयावलिका प्राचीन उपांगों का संग्रह है। नंदी सूत्र के अनुसार कभी यह विशाल उपांग थे। वर्तमान में निरर्यावलिका वहुत ही लघु काय ग्रंथों का संग्रह है। हमारे अतिरिक्त इस शारत्र का अनुवाद बहुत विद्वानों ने हिन्दी, गुजराती, जर्मन व अंग्रेजी भाषाओं में किया है। पर सव वडी हिन्दी टीका श्रमण संघ के प्रथम जैन आचार्य श्री आत्मा राम जी महाराज ने १६४८ में सम्पन्न की थी। ३० जनवरी १६६२ के उनके स्वर्गवास के बाद यह शास्त्र प्रकाशित न हो सका।
एक दिन हम स्व. साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के चरणों में बैठे थे। उन्होंने हमें अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए आदेश दिया कि “वर्षों से मेरे मन में एक इच्छा है कि आचार्य श्री के किसी अप्रकाशित आगम का
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