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-आस्था की ओर बढ़ते कदम साहित्य जगत की इस कृति की प्रस्तावना प्रसिद्ध सिक्ख इतिहासकार स्वः शमशेर सिंह अशोक ने लिखी थी। यह उनकी अंतिम प्रस्तावना थी। मेरा धर्मभ्राता रविन्द्र जैन उनके गांव में सरकारी नौकरी करता था। श्री अशोक अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इतिहासकार थे। सव से वडी वात है कि उनका जैन धर्म के प्रसिद्ध आचार्य आत्मा राम जी महाराज से घनिष्ट संबंध था। वह उनकी विद्वता से बहुत प्रभावित थे। जैन मुनियों के तप त्याग का हृदय से सन्मान करते थे। उनकी विशाल लाईब्रेरी में हजारों पुस्तकें थी। जो उन्होंने अपने जीवन काल में ही पंजाबी विश्वविद्यालय को भेंट कर दी थी। वह पंजाव इतिहास के प्रतिष्टत विद्वान थे। जब हमारे द्वारा इस पुस्तक की रूप रेखा दिखाई गई तो उन्होंने हमारी लिखत वात को अक्षरतः सत्य माना। उनका मानना था कि ब्राह्मणवाद के कारण जैन धर्म का विलय हिन्दु धर्म में होता रहा है। जैन धर्म की ही नहीं, हर धर्म पर ब्राह्मणों ने अपना प्रभाव छोडा है। आज सिक्ख धर्म भी ब्राह्मणों की परम्परा से बंधा है। जिन के लिए गुरु साहिवान सिक्खों को वर्जित किया था। धर्म के वारे उनके विचार स्पष्ट थे “धर्म में नैतिक, सदाचार, सभ्यता, दर्शन व इतिहास सव आ जाता है। धर्म इन मूल भूत तत्वों के मिश्रण का नाम है।" फिर ग्रंथ का प्रकाशन श्री आत्म जैन प्रिंटिंग प्रेस लुधियाना से प्रकाशित हुआ।
- इस प्रकार यह ग्रंथ भी हमने तैयार कर अपनी गुरूणी साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के कर कमलों में समर्पित किया। हम इस ग्रंथ की एक प्रति लेकर भाषा विभाग में पहुंचे, जहां हमारी भेंट वर्तमान निर्देशक डा. श्री मदनलाल हसीजा से हुई। उन्होंने हमें जैन धर्म की कुछ ऎटरी पंजावी कोष में लिखवाने के लिए बुलाया था। ग्रंथ देख कर उन्होंने
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