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समर्पण जब यह ग्रंथ प्रकाशित हो रहा था इसी बीच २० जून २००२ को मेरे पूज्य पिता श्री स्वरूप चन्द जैन जी का स्वर्गवास हो गया। पुस्तक में मैंने उनका वर्णन जीवित अवस्था में किया है। सो विज्ञ पाठक इसे समझेंगे।
मैं यह ग्रंथ अपने पूज्नीय पिता श्री स्वरूप चन्द जैन जी को समर्पित करता हूं। जिनकी कृपा से मैं धर्म, समाज व परिवार से इस रूप में समाज के सामने हूं।
शुभ चिंतक
मंडी गोबिन्दगढ़।