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- आस्था की ओर बढ़ते कदम आचार्य श्री ने इस स्तोत्र को भयहरण स्तोत्र वताया है। आचार्य श्री ने इस स्तोत्र में स्वयं के बारे में कहा
"हे देव द्वारा पूजित सिंहासन पर विराजमान प्रभु ! मैं कितना निलर्ज हूं जो स्तुती ज्ञान को न जानते हुए भी आष की स्तुती को तैयार हुआ हूं। पर इस में मेरी कोई त्रुटि नहीं, क्योंकि पानी में चन्द्रमा की छाया देख बालक उसे क्या पकड़ने का अभ्यास नहीं करते ?"।३।।
"हे महामुनि मैं शक्तिहीन आप की भक्ति को प्रस्तुत हुआ हूं। जेसे कमजोर हिरणी अपने वालक की रक्षा सिंह से करती है, ठीक मेरी स्थिति उस हिरणी जैसी है "१५।।
यह स्तुती के हर श्लोक में छन्द, रूपक व अलंकार के दर्शन होते हैं। अनेकों आचायों ने इस पर टीका शारत्र रचे हैं। उस स्तोत्र का हर श्लोक हर शब्द चमत्कारी फलदायक है। इस का मंत्र शास्त्र में अपना स्थान है। जैन धर्म में यह स्तोत्र भक्ति मार्ग की पराकाष्टा है। सब से बड़ी वात है कि इस स्तोत्र को जैन धर्म के सभी सम्प्रदाय श्रद्धा से मानते हैं। हां, इस के श्लोक संख्या को लेकर श्वेताम्बर मुनि पूजक संघ वाकी जैन समाज से कुछ मत भेद हैं। श्वेताम्बर जैन मुर्ति पूजक संघ इस की श्लोक संख्या ४५ मानता है। वाकी सभी ३ सम्प्रदाय ४८ मानते हैं। कल्याण मंदिर स्तोत्र २ :
__ हमने इस स्तोत्र का पंजावी अनुवाद किया है। यह आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर की अमर कृति है। इस की रचना भी उज्जैनी का महाकाल मन्दिर माना जाता है। जव राजा विक्रमादित्य ने आचार्य सिद्धसेन दिवाकर से शिव
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