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- आस्था की ओर बढ़ते कदंग साहित्य से किया था। उनके पुत्र मनक ने दीक्षा ग्रहण की थी। जव दीक्षा ग्रहण की तो आचार्य ने अपने ज्ञान बल ले जाना कि मनक की आयु कुछ दिन शेष है। कुछ दिनों में विशाल ज्ञान पढ़ाना असंभव था। आचार्य श्री ने १४ पूर्व से दस अध्ययनों का यह सूत्र तैयार किया। वाल मुनि अल्पायु में इस सूत्र के माध्यम से सारे सादाचार नियमों का पालन करने लगे। यह सूत्र इतना प्रसिद्ध हुआ कि आचार्य की इस कृति को श्री संघ ने भगवत् वाणी के रूप में मान्यता प्रदान की। इस सूत्र के विषय में यह कहा गया है कि पंचम काल में जब सब आगम नष्ट हो जाएंगे। पु. के अंत में यह ही आगम सुरक्षित रहेगा। इस आगम -. अनेकों आचार्यों ने टीका व भाष्य व टव्वा लिखे हैं। अनः वह ग्रंथ अप्रकाशित
श्रमण सूत्र २ :
२५वीं महावीर निर्वाण शतब्दी समिति के अवसर पर प्रसिद्ध गांधीवादी सर्वेदय नेता विनोबा भावे जी की प्रेरणा से चारों सम्प्रदायों ने जैन धः का एक सारभूत ग्रंथ तैयार किया। इस ग्रंध में श्वेताम्बर, दिगम्बर ग्रंथों से विभिन्न विषय पर श्लोकों का संकलन कर इसे सर्वमान्य जैन ग्रंथ बना दिया। हम दोनों ने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ का पंजाबी अनुवाद किया है। निरयावालिका आदि ५ उपांग ७ :
निरयवालिका ५ उपांग : इस उपांग ५ उपांग एक जिनमें संकलित किए गए हैं इस में प्रथम उपांग में श्रेणिक परिवार वैशाली विनाश, कोणिक जन्म, रथ मुसल संग्राम का वर्णन है। श्रेणिक पुत्रों का युद्ध में मरने, उनकी रानीयों द्वारा प्रभु महावीर के पास साध्वी जीवन स्वीकार
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