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________________ - स्था की ओर बढ़ते कदम में निगंध, भिक्षु, श्रमण शब्दों की व्याख्या की गई है। यह सब साधु के पर्यावाची नाम हैं जे. प्राचीन काल से जैन साधु के लिए प्रयोग होते थे। द्वितीय श्रुत स्कंध का दृला नाम महानिशिथ है। इस के सात अध्ययन हैं। इन सात अध्ययनों में अधिकांश दार्शनिक विवेचन के साथ ही आचार का सुन्दर विवेचन है। इन अध्ययनों के बारे में आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने जैन आचार के पृष्ट ३६९ में बताया है : विना प्रयोजन के मनोरंजन हेतु की जाने वाली हिंसा अनंथ दण्ड है। श्रमणों को संबन पूर्वक आहार ग्रहण करना चाहिए। जो साधक षट् काय के जीवों के वध का परित्याग नहीं करता, उनके साधु मित्रवत् व्यवहार नहीं करता, उसकी भावना सतत्, सावद्यानुशासन की रहती है जिस से निरंतर वह श्रमण कर्मवध करता है। अतः प्रत्याख्यान आवश्यक नहीं, अनिवार्य है। आचार का सही पालन करने के लिए व अनाचार से बचने के लिए भाषा विवेक आवश्यक है। आदक कुमार मुनि ने गोशालक, बोद्ध, भिक्षु वेदवादी वाहण, हरतीतापस आदि के साथ विस्तार से चर्चा करके उन परम्पराओं के आचार का खण्डन कर सम्यक आचार का प्रतिपादन किया है। लेप गाथापति के धार्मिक जीवन के माध यम से गृहस्थ के आचार का वर्णन हुआ है। पार्श्वपत्य पढालपुत्र और गणधर गौतम की आपसी महाव्रत धर्म और पंच महाव्रतों की चर्चा का विश्लेषण है। इस तरह प्रस्तुत आगम में भी अध्यात्मिक सिद्धांतों को जीवन में ढालने का और शुद्ध श्रमणाचार का पालन करने के लिए अत्याधिक बल दिया है। श्रमणों को संसारिक प्रवृतियों में भाग नहीं लेना चाहिए और न ही अपना मन प्रकट करना चाहिए, उसे मध्यरथ भाव रखना 163
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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