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आस्था की ओर बढ़ते कदम संबंधों पर ५४ गाथाओं में प्रकाश डाला गया है।
२७वें अध्ययन में गर्ग मुनि का वर्णन है । जो वहुत तमस्वी व निपूण आचार्य थे । इस के विपरीत आप के शिष्य दम्भी, अविनित व अनुशासनहीन थे । गर्गाचार्य ने ऐसे शिष्यों का परित्याग कर एकांत साधना करने का निश्चय किया। इस अध्ययन का नाम क्षुल्किया है। जिसका अर्थ दुष्ट वैल है जो रास्ते में गाडी से पीछा छुड़वा स्वामी के लिए मुश्किल का कारण वनता है। इस अध्ययन में विनय व अविनय में अंतर बताया गया है । इस अध्ययन में १७ गाथाएं हैं।
२८वें अध्ययन का नाम मोक्ष मार्ग गति है । इस अध्ययन में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक्चारित्र व सम्यक्तप को मोक्ष मार्ग कहा गया है । ५ प्रकार के ज्ञान, पट्ट द्रव्य, नव तत्वों, २० प्रकार के सम्यकत्, आगमों का वर्णन है । इस मे सम्यकत् चारित्र के भेद, तप के भेदों का संक्षिपत व सरल वर्णन है । मात्र ३६ गाथाओं में सारे जैन दर्शन की रूप रेखा प्रस्तुत की गई है
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२६वां अध्ययन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह प्रश्नोत्तर के रूप में है । इस में ७३ प्रश्नो का उत्तर है । इन में संवेग, निर्वेद, धर्म श्रद्धा, सहधर्मी वातरलय, आलोचना, निंदा, गृहा, समायिक, चर्तुविशतित्त्व वन्दन, प्रतिक्रमण, कार्योत्सर्ग, प्रत्याख्यान, स्तुती, मंगल, प्रतिलेखना, प्रायश्चित, क्षमायाचना, स्वाध्याय, वाचना, प्रतिपुच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्म कथा, श्रुत, एकाग्रता, संयम, तप, व्यवधान, सुखसांत, अप्रतिवधता, विविक्त शयासन, विनिर्वतना, संभोग, उपधि, आहार प्रत्याख्यान, कषायत्याग, योग, देह मोह का त्याग, सहायता न चाहने, भक्त प्रत्याख्यान, समभाव प्रत्याख्यान, प्रतिरूपता, सेवा, सर्वगुण संपंनता, वीतरागता, क्षमा, निरलोभना,
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