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-आस्था की ओर बढ़ते कदम आंख का रोग हो गया। इस रोग के निवारण के लिए वैद्यों ने अनेको उपचार किए। फिर मंत्र-तंत्र व यंत्र भी मेरी पीड़ा को कम न कर सका। मेरे माता-पिता की चिंता इस रोग को कम करने में सहायक न हो सकी। मेरी पत्नी जो हर समय मेरी सेवा में रहती थी वह भी मेरी पीड़ा को कम करने में किसी प्रकार का सहयोग न कर सकी। इस प्रकार सब कुछ होते हुए भी मैं अनाथ था। मेरा धन-धान्य . व परिवार मेरी पीड़ा में काम न आ सका। कोई मेरा नाथ न बन सका। फिर मैंने धर्म का सहारा लिया। मैंने सोचा कि अगर मैं इस
रोग से मुक्त हो जाउं तो मैं साधु जीवन ग्रहण कर लूंगा। - ऐसा सोच कर मैं रात को सोया सुवह उठा तो मेरा रोग
धर्म के प्रताप से समाप्त हो चुका था। मैंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार साधु जीवन ग्रहण किया। अव मैं अपना नाथ स्वयं हूं। मुझे किसी नाथ की जरूरत नहीं। अव मेरा धर्म ही मेरा नाथ है। इस सुन्दर अध्ययन में ६० गाथाएं हैं जिन में अनाथ सनाथ का भेद बताया गया है।
२१वें अध्ययन का नाम समुन्द्रपालीय है। इस समुद्रपाल के किसी अपराधी को देख कर दीक्षा लेने का वर्णन है। वाकी अध्ययन में साधूचा का वर्णन है। इस में २४ गाथाएं हैं। साधू को राग द्वेष रहित जीवन विताने का उपदेश है।
२२वें अध्ययन भगवान नेमिनाथ के जीवन से संबंधित है। इस अध्ययन में रथनेमि जो भगवान का भ्राता था, के साधु जीवन से भटकने का वर्णन है। उसे भगवान नेमिनाथ को मंगेतर साध्वी राजुलमति साधु जीवन में उपदेश के माध्यम से संयम में स्थिर करती है। इस अध्ययन का नाम रथनेमिया है। इस में ४७ गाथाएं हैं। २३वां अध्ययन जैन इतिहास का महत्त्वपूर्ण
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