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- आस्था की ओर बढ़ते कदम ७. गच्छाचार प्रकिर्णक हमारा अप्रकाशित साहित्य : १. निरयावलिका सूत्र २. दशवकालिक सूत्र ३. ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र
यह सूची मैंने हमारे द्वारा अनुवादित, सम्पादित व टीकाकार के रूप में प्रकाशित अर्धमागधी प्राकृत साहित्य की है। जैन तीर्थकरों ने अपना धर्मउपदेश स्थानीय लोकभाषा में दिया है। इसी भाषा का नाम अर्धमागधी है। इसी भाषा में तीर्थकरों ने धर्म उपदेश दिया। यह भाषा कई भाषाओं की जननी है। इसका व्याकरण कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेम चन्द्र जी महाराज ने किया था। इस का नाम सिद्ध-हेम व्याकरण है। जैन आगमों पर संस्कृत भाषा में टीका आचार्य शीलांकाचार्य व आचार्य अभय देव सूरि ने लिखे हैं। नियुक्ति की भाषा प्राकृत है। संस्कृत व प्राकृत भाषा का मिला जुला रूप चुर्णि में उपलब्ध होता है। नियुक्ति के अतिरिक्त राजरथानी व गुजराती में उपलब्ध हैं। नियुक्तिकार आचार्य भद्रवाहु है। चुर्णि के रचिता आचार्य श्री जिन दास गणिक्षमाक्षमण हैं। इसी तरह विभिन्न भाषाओं में जैन आगमों पर कार्य हर युग में विद्वानों ने किया है। अपनी विद्वता की धाक जमाई है। वर्तमान में आगमों पर मुनि श्री पुण्य विजय, श्री जिन विजय, श्री जंतु विजय श्री आचार्य आत्मा राम जी महाराज, आचार्य श्री तुलसी जी, आचार्य श्री नथ मल (आचार्य महाप्रज्ञ), उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज व आचार्य श्री मिश्री मल्ल के नाम उल्लेखनीय हैं।। श्री उतराध्ययन सूत्र - १ :
श्रमण भगवान महावीर अपना धर्म प्रचार करते
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