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- आस्था की ओर बढ़ते कदम उन्होंने भारी विरोध के बीच आचार्य श्री की समाधि के निर्माण का कार्य जारी रखा है। आचार्य श्री के कार्य को
आगे बढ़ाया है। उनकी परम्परा की रक्षा सुन्दर व्यवस्थित ढंग से की है। अगला अवार्ड डा० दमोदर शास्त्री को प्रदान किया गया। उन्होंने संस्कृत भाषा में जैन धर्म पर किये कार्य के लिए दिया गया।
इस अवार्ड के जीवन में एक महत्वपूर्ण प्रसंग तव आया, जव गुरूणी साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज देहली में पधारी। मैं यहां एक बात बता दूं कि महाराज श्री जीवन में दो बार ही देहली पधारे थे। एक बार जव उनके पिता श्री खजान चन्द जैन व माता दुर्गा देवी जी जैन जीवित थे और अंतिम वार उनके स्वर्गवास के वाद देहली पधारे। वहां उन्होंने देहली के विभिन्न भागों को पवित्र किया। चर्तुमास करोल बाग में किया। यह १६६२ की बात है। उस समय हमारे पंजावी ग्रंथ भगवान महावीर जी की द्वितिय आवृति करोल माग के सुश्रावक सेट सुशील कुमार जैन ने प्रकाशित करवाई थी। उस समय पंजाब कम्पयूटर का नया युग आया था। हमारा यह ग्रंथ लुधियाना में मेरे धर्म भ्राता
श्री रविन्द्र जैन की देख रेख में छपा। उस समय ६ दिसंबर __ की घटना हुई नहीं थी। पर यह ग्रंथ ६ दिसंबर १६६२ के
वाद प्रकाशित होना शुरू हुआ। उन दिनों मालेरकोटला में कफ! था। मेरे धर्म भ्राता ने यह ग्रं, लुधियाना में रह कर एक सप्ताह में प्रकाशित करवा दिया। जब ग्रंथ छपा, तभी कफर्दू भी समाप्त हो चुका था। पी चर्तुमास की समाप्ति पर वीर नगर गुड मंडी में एक समारोह रखा गया। जिस में साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के विदाई महोत्सव पर, यह अवार्ड कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के जैन बौद्ध धर्म के विद्वान डा० धर्म चन्द्र जैन को दिया गया। उनका शोध