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= आस्था की ओर बढ़ते कदम
उन्हें अभिनंदन पत्र समर्पित किया। अतिथियों व हमारा सम्मान किया।
समारोह साध्वी सरिता के मंगलाचरण व प्रवचन से शुरू हुआ। अपने प्रवचन में साध्वी श्री सरिता जी ने प्रवर्तनी श्री पार्वती जी का वर्णन विस्तार से किया। कई वातें उन्होंने प्रवर्तनी के बारे में ऐसी बताई, जिनका हमें पता न था। फिर हुआ मेहमानों का अभिनंदन.। उनके गले में हार डाले गए। फिर मेरे धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन ने अपना लिखित भाषण व घोषणा पत्र पढ़ा। विदेशी जैन विदूषी इस समारोह से बहुत प्रसन्न हुई। उस ने अपनी सहायक अनुवादिका व शिष्या डा० नलिनि बलवीर की और से धन्यवाद पत्र पढ़ा। मैंने विदूषी डा० कैय्या को अवार्ड की ट्राफी, सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र व शाल ओढ़ाया। डा० नलिनि बलवीर का भी सन्मान किया गया। मेरे द्वारा अगला अवार्ड डा० नलिनि बलवीर को देने की घोषणा की गई। वह अवार्ड वाद में जर्मन राजदूत ने डा० भट्ट की सहायता से जर्मन पहुंचाया गया। इस समारोह में साध्वी सरिता जी ने धन्यवाद करते हुए कहा कि मैं साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की आभारी हूं कि उन्होंने मुझे यह स्वर्णिम अवसर प्रदान किया। मैं उनकी ऋणी हूं। वह हमारी गुरूणी तुल्य है। उनका स्नेह व आर्शीवाद हमें हमेशा मिलता रहा है। भविष्य में मिलता रहेगा। तब से हमारा संपर्क दोनों विदूषीयों से चलता रहा है। उन्होंने हमारे सूत्रकृतांग व निरयवालिका सूत्र में भूमिका लिखी है। मेरा पत्र व्यवहार आप से चलता रहता
है।
इसी श्रृंखला में यह अवार्ड विश्व में जैन धर्म का प्रचार करने वाले, जैनाचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज
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