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उत्कट विरोध का डटकर मुकाबिला तुम लोग यह मानते हो कि 'हम बूटेराय के अनुयायी हैं, अनुरागी है, परम भक्त हैं, अटूट श्रद्धा है'; तो जब हमारा वेष छीनने के लिये वे सब मिलकर आवेंगे तब तुम लोग मत आना। जब वे लोग मेरा वेष उतारेंगे तब मैं स्वयं संभाल लूंगा । चिंता की कोई बात नहीं है। राज तो अंग्रेज का ही है। इन लोगों का तो नहीं हैं। कोई तो माई का लाल इनकी भी पूछनेवाला निकल ही आवेगा, जो यह सोचेगा कि मैंने क्या अपराध किया है जो मेरा वेष छीना जा रहा है। सब झूठ-सच का निर्णय हो जावेगा । जो कुछ होगा, सामने आवेगा तब देख लेंगे । अभी तो कुछ हो नहीं रहा । इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है। ___ तुम लोग अपने साधुओं और भाइयों को जाकर कह दो कि बूटेराय तुम्हारी गीदड भभकियों से नहीं डरता । तुम अपने घर को मजबूत करके वेष छीनने को आना । कहीं ऐसा न हो कि तुम लोगों को लेने के देने पड जावें।"
आपके उत्तर के समाचार पाकर वे लोग विचार में पड गये और वेष छीनने का विचार टल गया । यह उपसर्ग तो टल गया, तब उन लोगों ने चर्चा (शास्त्रार्थ) करने का निर्णय किया । दूसरे दिन ये स्थानकमार्गी सब साधु-साध्वीयाँ और श्रावक-श्राविकायें स्थानक में जमा हो गये । आपको चर्चा के लिये निमन्त्रण भेज दिया। निमन्त्रण पाते ही आपश्री चर्चा के लिये उनके स्थानक में जा पहुंचे।
चर्चा चालू हो गई । ऋषि गंगारामजी ने कहा कि"गौतमस्वामी के मुख पर मुंहपत्ती बंधी हुई थी।" परंतु आप अभी कुछ बोल ही न पाये थे कि आपके उत्तर की प्रतीक्षा किये
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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