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सद्धर्मसंरक्षक में जिन-प्रतिमा के पूजन का कोई संकेत भी नहीं मिलता तथा मुँह पर मुंहपत्ती न बाँधना भी आगमविरुद्ध तथा हिंसामूलक है । दान देने में, और साधर्मीवात्सल्य आदि में भी धर्म नहीं है। आपकी ऐसी श्रद्धा सुनकर हमें आश्चर्य होता है ! सच-झूठ का निर्णय कौन करे?" आपने कहा कि "अमरसिंह यहाँ आनेवाला है। उसने इस विषय पर मेरे साथ चर्चा करनी है। उसके यहा आने से पहले तुम लोग मेरे साथ चर्चा कर लो कि मेरी श्रद्धा ठीक है या नहीं। आप लोगों में बत्तीस सूत्रों के जानकार विद्वान श्रावक भी मौजूद हैं। थोकडों, बोल-विचारों को भी समझनेवाले शास्त्री विद्यमान हैं। जिससे आप लोग वस्तुस्थिति को समझ लें।" सब श्रावकों ने एक स्वर से कहा - "गुरुदेव ! यदि ऐसा ही है तो यहाँ के संघ में लाला धर्मयशजी दुग्गड के सुपुत्र लाला कर्मचन्दजी बत्तीस सूत्रों के पंडित है, वह थोकडों, बोल-विचारों के भी मर्मज्ञ विद्वान है, बहुत ही सरल प्रकृति और सौम्य स्वभाव के हैं । वह मात्र शास्त्रज्ञ ही नहीं है, परन्तु संयम-शीलवान तथा क्रियापात्र और दृढधर्मी भी है। इनके साथ हमारे संघ में लाला निहालचन्दजी बरड के सुपुत्र लाला गुलाबराय भी अच्छे जानकार हैं। इन दोनों के साथ आप चर्चा कर लीजिये। अन्य भाई भी थोडे-बहत जानकार हैं। सब चर्चा में मौजूद रहेंगे। यदि ये दोनों भाई आप की श्रद्धा को ठीक मान लेंगे तो हम भी मान लेंगे। सकल संघ ने इस बात की एक मत से स्वीकृति दे दी । लाला कर्मचन्दजी दुग्गड शास्त्री के साथ सकल संघ की
१ पंजाब में स्थानकमार्गी उस समय अपने आपको ढूंढिया कहने में गौरव समझते थे। इस लिये ये ढंढिया के नाम से प्रसिद्ध थे। ये लोग मात्र बत्तीस आगम ही मानते हैं।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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