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श्रीबुद्धिविजयजी द्वारा क्रांति
२२१ ३- लुंकामतियों (स्थानकमार्गियों) द्वारा जिनप्रतिमा-भक्ति का विरोध तथा मुहपत्ती में डोरा डालकर चौबीस घंटे उसे मुख पर बाँधे रहना, तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित जैनागमों के विरुद्ध साधुवेष होने से ऐसे अन्यलिंगियों की पूजा मानता का निषेध ।
४- शिथिलाचारी संवेगी साधुओं का श्रावक-श्राविकाओं द्वारा अपने लिये धन-संचय करना एवं वर्षों तक एक स्थान पर स्थानापति के रूप में निवास करना, रात्री को दीये-बत्ती की रोशनी में व्याख्यान करना, साधु-साध्वीयों, श्रावक-श्राविकाओं का एक स्थान में रहना आदि अनेक प्रकार के शिथिलाचार-भ्रष्टाचार सेवन करनेवाले पासत्थों की पूजा तथा अनेक क्रियाएं और बातें श्रीजैनागमों के विरुद्ध होने के कारण सद्गुरुदेवश्री बूटेरायजी ने इनका विरोध कर सुधार का बीडा उठाया और वह सद्धर्म के प्रचार तथा पुनर्स्थापन करने के लिये दृढतापूर्वक डट गये।
५- पंजाब में लुंकामती ऋषियों ने और पूजों (यतियों) ने तीर्थंकर देवों द्वारा प्ररूपित जैनधर्म के शुद्ध स्वरूप में विकृति ला दी थी।
६- भारत के अन्य प्रदेशों में उपर्युक्त दोनों कारणों के साथ शिथिलाचारी-स्थानापति संवेगी साधु; इन तीनों की जैनागमों के विरुद्ध आचरणा का प्रचार हो जाने के कारण जैनधर्म के स्वरूप का विकृत रूप में लोगों में प्रचार पा जाना इत्यादि ऐसी शिथिलताओं को मिटाया।
७- पंजाब में आपने सदा एकाकी विहार किया। किसी भी श्रावक आदि की सहायता अथवा सब प्रकार के आडम्बर आदि से रहित विचरते रहे । आहार-पानी, निवासस्थान आदि की दुर्लभ प्राप्ति अथवा अभाव के कारण भी क्षुधा-पिपासा आदि परिषह
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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