SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ सद्धर्मसंरक्षक हो जावेगा । इसलिए अमरसिंहजी के चर्चा न करके खिम्मतखामना के भाव हैं । बूटेरायजी और अमरसिंहजी का आपस में खिम्मत-खामना करा दो ।" तब दोनों पक्ष के श्रावक मिलकर आपके पास आये और कहने लगे कि - "स्वामीजी ! अमरसिंहजी कहते हैं कि बूटेरायजी के साथ मैं चर्चा करना नहीं चाहता । वह कहता है कि "वे मेरे से बड़े हैं, मैं तो उनसे खिम्मत-खामना करना चाहता हूँ।" तब आपने पूछा कि "तुम लोग अमरसिंहजी से पूछकर आये हो अथवा अपनी तरफ से कहते हो?" उन्हों ने कहा कि "हमें अमरसिंहजी ने भेजा है और कहला भेजा है कि 'मेरे चर्चा करने के भाव नहीं हैं, मैं तो खिम्मत-खामना करना चाहत हूँ। चाहे श्रीबूटेरायजी मेरे यहाँ आ जावें, चाहे मैं उनके यहाँ चला जाऊंगा । जैसी उनकी इच्छा हो वैसा मैं करने को तैयार हूँ।" जब आपके पास ये समाचार पहुंचे तब आपने सोचा कि "यदि अमरसिंह के परिणाम विनम्र हो गए हैं और उसकी भावना खिम्मतखामना करने की है तो व्यर्थ में मैं भी बैंचातान क्यों करूं? यदि जीव सद्बोध पावेगा तो अपने सरल परिणामों से, क्षयोपशम से, पुण्यानुबन्धी पुण्य के उदय से पावेगा । इसलिए मुझे भी खिम्मत-खामना कर लेनी चाहिये ।" फिर सोचा कि "खिम्मतखामना के लिए अमरसिंह को यहा आने के लिये बुलाऊं अथवा मुझे उसके पास जाना चाहिये ? उसको खिम्मत-खामना के लिए यहाँ बुलाना इसलिए उचित प्रतीत नहीं होता कि मुझे बडप्पन का अभिमान नहीं करना चाहिए । अभिमान चारों कषायों को उत्पन्न करने की भूमिका है। अतः मुझे स्वयं जाना चाहिए । यदि १. स्थानकमार्गी अपने साधुओं को स्वामीजी के नाम से संबोधित करते थे। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [126]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy