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पंजाब में पुनः आगमन और कार्य
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बूटेरायजी की श्रद्धा को स्वीकार कर लेना।" तब अमृतसर के लुंकामती (स्थानकमार्गी) बोले कि "हमारे साधु तो यहां पर हैं ही, तुम बूटेरायजी को बुला लो। यहां चर्चा हो जावेगी और सच-झूठ का निर्णय हो जावेगा ।" तब लाला देवीसहायजी ने कहा कि " लिखो इकरारनामे का इष्टाम और उस चर्चा में दो साधु तुम्हारे, दो हमारे तथा दो विद्वान पंडित हमारे और दो पंडित तुम्हारे होंगे । ये चारों पंडित शब्दशास्त्र, कोष, व्याकरण आदि के जानकार और
संस्कृत प्राकृत भाषाओं के जानकार होने चाहिएं। चर्चा के समय
इनके साथ नगर के प्रतिष्ठित और प्रतिभावान चार-पाँच पुरुष भी साक्षी रूप से बैठेंगे। दो पुलिस के अधिकारी भी विद्यमान होंगे। ताकि कोई दंगा-फिसाद न होने पावे । यह सब लिखा-पढी हो जाने के बाद हम पूज्य बूटेरायजी को अमृतसर में बुलावेंगे ।" तब वे लोग बोले-"हमें स्वीकार है। इस सभा में जो निर्णय होगा वह हम भी स्वीकार करने को तैयार है।" तब लाला देवीसहायणी ने कहा- "तो अच्छी बात है; तुम लोग सरकारी कागज (इष्टाम) मंगवाओ। इस पर इकरारनामा लिखकर सब के हस्ताक्षर हो जाने चाहिएं।" तब कहने लगे "हां हां लिखो लिखो !" पर कागज लिखने के लिए तैयार न हुए। टालमटोल करते चले गए। इस प्रकार चार-पाँच दिन बीत गए।
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पूज्य बूटेरायजी को इस बात की कोई खबर भी नहीं थी। आप विहार करते हुए लाहौर आ पहुंचे। यह बात वि० सं० १९२३ फागुन मास (ई० स० १८६६) की है। पर भावी को कौन टाल सकता है। जब अमृतसर में लाला देवीसहाय को आपके लाहौर आने का पता लगा तो उसने आपको अमृतसर में लाने के लिए तुरत
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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