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योग्य गुरु की खोज के लिये मनोमंथन
सच है - "महापुरुषों के मन का बडप्पन प्रत्येक प्रसंग पर प्रत्यक्ष हुए बिना नहीं रहता।" ।
दूसरे दिन प्रातःकाल गिरनार गिरि पर चढे । बालब्रह्मचारी बाइसवें तीर्थंकर श्रीनेमिनाथजी की भव्य श्याम मूर्ति के दर्शन करके चित्त बहुत हर्षित हुआ । वृद्धिचन्दजी सहस्राम्रवन होकर वहाँ दादा के दीक्षा तथा केवलज्ञान भूमि पर स्थापित चरणों (पगलों) का दर्शन-वन्दन करके नीचे उतर आये और प्रेमचन्दजी ऊपर ही रहे । दूसरे दिन वृद्धिचन्दजी फिर पांचवी टोंक की यात्रा कर नीचे उतर आये और संघ के साथ विहार किया। प्रेमचन्दजी का विचार वहीं रहने का था। इसलिये वह पहाड पर ही रहे और एक गुफा में ध्यान करते रहे। अन्त में उनका वहीं स्वर्गवास हो गया।
संघ जामनगर पहुंचा । मुनि वृद्धिचन्दजी भी साथ में थे । यहाँ से वृद्धिचन्दजी मोरबी होते हुए बढवान पहुंचे । वहाँ पहुंचने पर आपने सुना कि "लींबडी में बड़े गुरुभाई मूलचन्दजी सख्त बीमार हैं, बहुत अशक्त हो गये हैं। उनकी वैयावच्च गुरुमहाराज को स्वयं करनी पडती है।" यह समाचार पाते ही आप एकदम विहार कर लींबडी पहुंचे। वृद्धिचन्दजी के आ जाने पर मूलचन्दजी के मनको सांत्वना मिली । क्योंकि गुरुमहाराज को अपनी सेवाशुश्रूषा करते हुए देखकर उनका मन निरन्तर खेद-खिन्न रहता था। "उत्तम शिष्य इसी स्वभाववाले होते हैं।" ___ मुनि मूलचन्दजी के स्वस्थ हो जाने पर और शरीर में शक्ति आ जाने पर वहाँ से मुनि श्रीबूटेरायजी अपने दोनों शिष्यों के साथ अहमदाबाद पधारे और उजमबाई की धर्मशाला में उतरे ।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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