________________
१०१
योग्य गुरु की खोज के लिये मनोमंथन परन्तु मोक्षदायी तो कदापि नहीं हो सकते । यदि सम्यग्दृष्टि जाग्रत हो तभी जीव मोक्ष का अधिकारी हो सकता है। सम्यग्दृष्टि जाग्रत होने से ही सम्यग्दृष्टि व सम्यक्चारित्र संभव है। फिर भी जिसने इन जैन मार्ग की तरफ मुझे प्रेरित किया है वह उतने रूप में तो मेरा उपकारी है ही। इस विषय को स्पष्ट करने के लिए मैं एक दृष्टांत देना चाहता हूँ।"
दृष्टांत - कोई मनुष्य अपने गांव को जाने के लिये रवाना हुआ, पर वह दिग्मूढता के कारण रास्ता भूल गया और भटक गया, परन्तु वह अपने गांव का नाम तो जानता था । उसने रास्ते जाते लोगों से अपने गांव का रास्ता पूछा । जो उस गांव का रास्ता नहीं जानते थे वे क्या बतलाते? इतने में उसे एक ऐसा व्यक्ति मिल ही गया जो उस गांव का रास्ता अमुक चौराहे तक तो ठीक जानता था परन्तु उसके आगे के रास्ते की उसे खबर नहीं थी। उस राही ने उस भूले-भटके व्यक्ति को उस चौराहे तक पहुंचा दिया और कह दिया कि मैं इतना ही जानता हूँ आगे के लिए किसी जानकार से पूछ लेना । कुछ प्रतीक्षा के बाद उसी गांव का पूरा रास्ता जाननेवाला व्यक्ति उसे मिल गया और वह उससे मालूम करके अपने इच्छित गांव में पहुच गया।
उस पथिक को जिसने जितना सही रास्ता बतलाया था, उतना तो वह उसका उपकारी है और जिसने उल्टा रास्ता बतलाया वह उसका अनिष्टकर्ता है। इसी प्रकार जीव को जो सच्चा मार्ग बतलावे वह उपकारी है और जो विपरीत मार्ग बतलावे वह अनिष्टकर्ता है। जो व्यक्ति शुद्ध मार्ग बतलावे वह हमारा परम उपकारी है। फिर वह आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका चाहे कोई भी
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
[101]