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कहने की मुझे आज्ञा नहीं देंगे? और स्मरण रखें, यह मैं किन्हीं और के लिए नहीं कह रहा हूं, यह मैं आपसे कह रहा हूं। यह मैं हर एक से कह रहा हूं। क्योंकि हम हैं, जो इसे बनाते हैं। हम हैं, जो समय को बनाते हैं और सदी को बनाते हैं । समय और सदी आसमान से नहीं उतरते, हम उन्हें निर्मित करते हैं, हम उनके निर्माता हैं।
हर आदमी जो मौजूद है इस जमीन पर, इस जमीन पर जो हो रहा है, उसका सहयोग उसमें है। अगर दुनिया में दस करोड़ लोग मारे गए हैं, स्मरण रखें, उस हत्या का जिम्मा प है। कोई यह भूल से न समझे कि उस हत्या पर मेरा जिम्मा नहीं है। जो सोचता हो कि मैं चींटियों को बचा कर निकल जाता हूं, जो सोचता हो कि पानी छान कर मैं पी लेता हूं, इसलिए मुझ पर हिंसा का क्या भार है, वह नासमझ है। उसे पता नहीं, हिंसा बहुत गहरी और बहुत सामूहिक है। अगर मेरे मन में थोड़ा सा भी क्रोध उठता है, अगर मेरे मन में थोड़ी सी भी घृणा उठती है, अगर मेरे मन में दूसरे को नष्ट करने का थोड़ा सा भी खयाल उठता है, तो नागासाकी में जो अणु बम गिरा, उसमें मेरा हाथ है। और भविष्य में भी अगर किसी मुल्क पर किसी का दुर्भाग्य होगा और अणु बम गिरेंगे, उसमें मेरा हाथ होगा। वह मेरे छोटे से क्रोध की चिनगारी, जब लाखों लोगों के क्रोध की चिनगारियां इकट्ठी होती हैं तो युद्ध में परिणत हो जाती हैं। बड़े युद्ध आकाश में नहीं लड़े जाते हैं, लोगों के हृदय में लड़े जाते हैं।
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अगर आपके हृदय में क्रोध उठता है, सारे युद्धों के लिए आप जिम्मेवार होंगे। अगर आपके हृदय में घृणा उठती है, सारे युद्धों का भार और उत्तरदायित्व आपको अनुभव करना होगा। और जब तक यह अनुभव न हो, जब तक मैं सारी जमीन पर जो हो रहा है उसमें अपने को सहयोगी अनुभव न करूं, तब तक मैं धार्मिक नहीं हो सकता हूं।
यह जो स्थिति है समय की, यह जो रुख है चीजों का, यह जो प्रवाह है समय का, इसे बदलना होगा अगर मनुष्य को बचाना है। अगर मनुष्य को बचाना है, तो मनुष्य को बदलना अपरिहार्य हो गया है। और अगर हम थोड़ी देर भी चूक गए और मनुष्य को हम नहीं बदल सके तो मनुष्यता को बचाना असंभव हो जाएगा। यह पचास वर्ष भी मुश्किल है कि आदमी बच जाए। यह मुश्किल है कि हम सन दो हजार देख पाएं। हम बीसवीं सदी को पूरा होते देख पाएं, यह असंभव मालूम होता है। जैसा मनुष्य है, अगर वह वैसा ही रहा, तो यह मुश्किल है कि मनुष्य के बचने की कोई संभावना मानी जाए। मनुष्य का भाग्य और मनुष्य का जीवन और भविष्य समाप्त हो गया है। एक ही आशा की किरण है कि मनुष्य परिवर्तित हो सके। और वह मनुष्य के परिवर्तन की किरण महावीर से मिल सकती है।
जब मैं यह कहता हूं वह महावीर से मिल सकती है, तो मेरा मतलब यह नहीं है कि वह क्राइस्ट से नहीं मिल सकती, मेरा यह मतलब नहीं है कि वह कृष्ण से नहीं मिल सकती, मेरा यह मतलब नहीं है कि वह बुद्ध से नहीं मिल सकती। जब मैं कहता हूं, महावीर से मिल सकती है, तो मेरा मतलब महावीर में बुद्ध, कृष्ण और क्राइस्ट सम्मिलित हैं। मुझे यह दिखाई नहीं पड़ता कि एक दीये में जो रोशनी जलती है, वह दूसरे दीये की रोशनी से भिन्न होती है। और जब मैं कहता हूं इस दीये से रोशनी मिल सकती है, तो मैं यह कह रहा हूं कि रोशनी केवल दीये से मिल सकती है। और वे दीये कहीं भी जले हों, वे महावीर के नाम से जले हों, वे बुद्ध के नाम से
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