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________________ मुझे स्मरण आता है, उनका निकटतम शिष्य था गौतम । गौतम के पीछे जो लोग आए, वे मुक्ति को, समाधि को उपलब्ध हो गए, लेकिन गौतम नहीं हुआ। महावीर ने बार-बार गौतम को कहा कि तुझे बहुत देर हुई, बहुत ज्ञान को सुनते - विचारते समय बीता, अब तक तुझे स्वयं प्रज्ञा उत्पन्न क्यों नहीं हो रही । तू थोड़ा समझ ! गौतम कहता है, मैं सब समझने की चेष्टा कर रहा हूं । न मालूम कौन सी बाधा है मुझे रोकती है। और फिर महावीर का महापरिनिर्वाण भी हो गया। गौतम अमुक्त था, अमुक्त ही रहा । जिस दिन महावीर ने देह त्यागी, गौतम पास के गांव में गया था। वह जब लौटता था, राहगीरों ने खबर दी कि महावीर देह को त्याग दिए हैं। गौतम वहीं रोने लगा। और उसने कहा, मेरा क्या होगा? उन भगवान के रहते भी मैं समाधि को और सत्य को उपलब्ध नहीं हुआ। उन भगवान की छाया में रह कर भी मैंने उस अंतः-शक्ति के जागरण को अभी अनुभव नहीं किया। उन भगवान की मौजूदगी में भी मैं अभी आत्म-साक्षात नहीं कर सका हूं। मेरा क्या होगा ! मैं तो डूब गया ! मुझे भी क्या उन भगवान ने अंतिम समय में स्मरण किया था ? मेरे लिए भी कोई स्वर्ण-सूत्र छोड़ा है ? राहगीरों ने कहा, महावीर ने कहा है गौतम को कह देना - और वह बात मैं आज समस्त उन लोगों से कह देना चाहता हूं जो महावीर को प्रेम करते, आदर करते, भगवान की तरह पूजते हैं— महावीर ने कहा है कि गौतम को कह देना, तू पूरी नदी पार कर गया अब किनारे को पकड़ कर क्यों रुका है ? तू सब कुछ पा चुका अब महावीर को पकड़ कर क्यों रुका हुआ है ? इनको भी छोड़ दे ! यह अदभुत क्रांति की बात है। यह अदभुत क्रांति की बात है कि महावीर कहते हैं, मुझे भी पकड़ो मत, मैं भी तुमसे बाहर हूं, मैं भी तुमसे अन्य हूं, मैं भी तुम्हारी आत्मा नहीं हूं। संसार भी बाहर है, तीर्थंकर भी बाहर हैं। पकड़ो मत बाहर कुछ । बाहर सारी पकड़ छोड़ दो। जब बाहर की कोई भी पकड़ न होगी तो भीतर उसका जागरण होगा, उसका दर्शन होगा, जो बाहर चीजों के पकड़ लेने के कारण दिखाई नहीं पड़ता है। जो बाहर की चीजों से छिप जाता, आवृत हो जाता है, उसकी अनुभूति होगी। यह अदभुत क्रांति की बात है कि कोई शास्ता, कोई गुरु यह कहे, मुझे भी छोड़ दो! आमतौर से गुरु कहेगा, मुझे पकड़ो! मेरा अनुसरण करो! मैं हूं मार्ग ! मेरी शरण में आओ, मैं हूं सब कुछ ! मैं तुम्हें पार कर दूंगा ! मैं तुम्हें द्वार दिखा दूंगा सत्य का ! मैं तुम्हें परमात्मा तक पहुंचा दूंगा! आमतौर से गुरु कहेगा, मैं सब कुछ हूं, मुझे स्वीकार करो। तुम नहीं स्वीकार करते हो, वही कमजोरी है। पूरी तरह स्वीकार करो । महावीर बड़े उलटे व्यक्ति मालूम होते हैं। वे कहते हैं, मुझे भी छोड़ दो! दुनिया में वैसा गुरु खोजना कठिन है, जो कहे मुझे भी छोड़ दो। मेरा अनुकरण मत करो, क्योंकि मैं भी बाहर हूं। अपनी ही आत्मा का अनुसरण करो । जो फर्क मैं समझाना चाह रहा हूं... अगर मैं आपसे कहूं, मेरा अनुगमन करो, तो मेरे पीछे आप चलेंगे। यह चलना बाहर चलना है। क्योंकि किसी अन्य का अनुगमन कर रहे हैं। 36
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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