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हैं और आप दूर खड़े रह जाते हैं। और जीवन में सबसे बड़ी साधना यही है कि जीवन के सारे तथ्यों के बीच आपकी चेतना दूर से देख पाए, ऊपर हो पाए।
तो महावीर ने सारे सुखों को, दुखों को–उसको ही हम तपश्चर्या कहें कि उन सबका वे निरीक्षण करते रहे और देखते रहे। देखते-देखते उन्हें दिखाई पड़ा कि मैं तो देखने वाला हूं
और जो हो रहा है उससे मेरा कोई भी वास्ता नहीं है। पहली बात दिखाई पड़ी कि जो हो रहा है, उसकी व्याख्या व्यर्थ है। दूसरी बात दिखाई पड़ी, जो हो रहा है उससे मेरा कोई वास्ता नहीं, मैं अलग हूं। जीवन में तीन बिंदु हैं। दो बिंदु हैं सुख और दुख के, वे हो रहे हैं। और एक तीसरा बिंदु है देखने वाले का, जानने वाला का।
एक गांव में मैं गया था। मेरे मित्र बहुत बीमार थे, गिर पड़े और उनके पैर खराब हो गए। जब मैं गया तो वे एकदम रोने लगे, मुझसे गले लगे और रोने लगे कि मैं तो अपाहिज हो गया
और जीवन खराब हो गया। अब मैं क्या करूंगा। अब तो मेरी जिंदगी बेकार हो गई। अब तो मैं यही सोच रहा हूं इन पिछले सात दिनों से कि किसी तरह मर जाऊं। खाट पर पड़े होकर जिंदा रहना भी कोई जिंदा रहना है! और अब तो जिंदगी भर ऐसे ही पड़े रहना पड़ेगा। सब गड़बड़ हो गया। मैंने उनसे कहा कि मैं तो बड़ी खुशी में आया हूं कि यह सुन कर कि तुम्हारे पैर टूट गए। क्योंकि पैर जब तक चलते थे तुम रुकने वाले नहीं थे, चलते ही रहते। और चलने वाला खो देता है और रुकने वाला पा लेता है। तो धन्य हैं वे जिनके पैर टूट गए। मैंने कहा, मौका मिला है कि कुछ पा सकते हो। वे बोले, क्या बात कर रहे हो! सब कारोबार गड़बड़ हो गया। मैंने कहा, उसे कोई संभाल लेगा, क्योंकि तुम नहीं रह जाओगे तो भी कारोबार संभला रहेगा।
यहां दुनिया में आज तक कारोबार कोई गड़बड़ हुआ ही नहीं। बल्कि आप हटे नहीं कि उसको पूरा करने वाला कोई खड़ा हो जाता है। बल्कि वह प्रतीक्षा कर रहा है कि आप कृपा करो
और हट जाओ, मुझे जगह दो। क्योंकि पुराना हटता है, तो नये को जगह मिलती है। नये प्रतीक्षातुर हैं कि पुराने हट जाएं। उनके पैर टूट जाएं। वे अलग हो जाएं। तो जिनके पैर में अभी दम है वे आएं और चलें।
तो मैंने कहा, इसमें तो कोई दिक्कत नहीं है। बच्चे संभाल लेंगे। कोई न कोई संभाल लेगा। इसकी कोई फिक्र की बात नहीं है। लेकिन बड़ा सौभाग्य यह हुआ कि मरने के पहले पैर टूट गए। मरने के साथ ही टूटते हैं सबके, तब कुछ मतलब नहीं रह जाता। अब कोई मौका मिल गया रुकने का, बैठने का, पड़े रहने का। वे बोले, क्या करें? क्या कहते हैं आप? मैं क्या करूंगा? मैंने उनसे कहा कि मैं यहां बैठा हूं, आंख बंद कर लें। पैरों में तकलीफ है, पीड़ा है, बहुत तकलीफ है। आंख बंद कर लें और यह देखें कि पीड़ा को आप देख रहे हैं या पीड़ा आपको हो रही है। मैं बैठा हूं यहां पास, आप आंख बंद कर लें, पांच-दस मिनट देखें, फिर मुझे कहें कि आप देखने वाले हैं या पीड़ा को झेलने वाले हैं। पीड़ा आपको हो रही है, या आपके भीतर कोई बिंदु है जो देख रहा है कि पीड़ा हो रही है।
उन्होंने दस मिनट आंख बंद की। मैं उनके पास बैठा देखता रहा। उनके चेहरे पर तना हुआ भाव क्रमशः शिथिल होता गया। मैंने देखा, उनकी पलकें जो खिंची थीं, ढीली हो गईं। उनके माथे पर जो बल थे, वे क्रमशः विलीन हो गए।
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