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जो बाहर सुख-दुख की खोज के भ्रम से मुक्त हो जाता है और जानता है कि यह तो मैं कंपन ही खोज रहा हूं और सब कंपन अंतस में पीड़ा को ही जन्म देंगे, वह फिर निष्कंप अवस्था को खोजने लगता है। मैंने कहा कि राजपथ से वह कब उतरता है? उस क्षण उतरता है, जब किसी भांति का कंपन उसे प्रीतिकर नहीं रह जाता। सब तरह के कंपन व्यर्थ और कष्ट और पीड़ा मालूम होने लगते हैं, तब वह मार्ग से नीचे उतरता है - उस मार्ग से जिस पर हम सब सेंसेशंस को और कंपन को खोजने में लगे हुए हैं, सुख को खोजने में लगे हुए हैं, दुख से बचने में लगे हुए हैं। दुख से बचते हैं, दुख पाते हैं; सुख खोजते हैं, सुख पा नहीं पाते। जहां हम खोजने में लगे हैं कंपन को वहां से वह नीचे उतर जाता है और निष्कंप की खोज शुरू कर देता है। कंपन की खोज संसार है और निष्कंप की खोज सत्य की खोज है या मोक्ष की खोज है। उस निष्कंप अवस्था में वह जाना जाता है जो मैं हूं ।
महावीर को किसी दिन यह दिखा और उन्होंने मार्ग छोड़ दिया। फिर उन्होंने कैसे निष्कंप को खोजा, उस संबंध में थोड़ी सी बातें और आपसे कहूं। एक तो वे निष्कंप की खोज में गए कंपन को व्यर्थ जान कर, सब भांति के कंपन के इल्यूजन से मुक्त होकर। कोई भी हो सकता है। जो भी जरा सुख-दुख के रूप को समझेगा, जागेगा और देखेगा, विचार करेगा और निरीक्षण करेगा, वह मुक्त हो जाएगा। यह तो मैं वही खोज रहा हूं जिससे मैं बचना चाहता हूं। जिससे मैं बचना चाहता हूं उसको ही खोजना चाहता हूं। यह तो मैं अपने ही हाथ से एक उपद्रव में लगा हूं जिसका कोई अंत नहीं हो सकता है । पर हम जल्दी से व्याख्या कर लेते हैं: यह सुख है, वह दुख है। खोज नहीं करते, देखते नहीं, निरीक्षण नहीं करते, ऑब्जर्वेशन हमारे मन में नहीं होता । इस ऑब्जर्वेशन को महावीर के शब्दों में मैं सम्यक दर्शन कहूंगा। जीवन के तथ्यों को ठीकठीक रूप से देख लेने से व्यक्ति सुख और दुख से मुक्त हो जाता है।
एक छोटी सी कहानी आपसे कहूं, जिससे खयाल आ जाए कि हम कितने जल्दी निरीक्षण नहीं करते और निर्णय ले लेते हैं। एक घोड़े की मैंने आपसे कहानी कही जो चोरी चला गया। एक और घोड़े की कहानी कहता हूं वह भी चोरी चला गया। लाओत्से चीन में एक विचारक हुआ। वह एक गांव में गया था। उसने गांव के लोगों से पूछा, यहां कोई अदभुत आदमी है जिसके मैं दर्शन करूं ? लोगों ने कहा, है! लोग उसे ले गए एक बूढ़े के पास ।
उसने पूछा, इसमें क्या खूबी है ? तो उन लोगों ने कहा, अभी-अभी एक घटना घट गई है। इसके पास एक घोड़ा था और ऐसा घोड़ा था कि दूर-दूर प्रांतों में नहीं था । बहुत उसकी मांग थी। लोग उसे दर्शन करने, देखने आते थे। एक जमाना था कि घोड़ों की इज्जत हुआ करती थी। इसका घोड़ा एक रात चोरी चला गया। तो हम सब गांव के लोग गए और इससे हमने कहा कि यह तो बड़ी दुख की बात हो गई कि घोड़ा चोरी चला गया। यह बूढ़ा हंसने लगा । और इसने कहा, इतना ही कहो कि घोड़ा चोरी चला गया। यह मत कहो कि दुख की बात हो गई । व्याख्या मत करो, तथ्य इतना है कि घोड़ा चोरी चला गया।
तो हम बहुत हैरान हुए। फिर यह बोला कि हो भी सकता है, क्या आखिर में निकले कुछ कहा नहीं जा सकता है, सुख निकले कि दुख निकले। कुछ कहा नहीं जा सकता, जल्दी निर्णय मत करो। फिर लोग वापस लौट गए। कोई आठ दिन बाद घोड़ा वापस लौट आया और
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