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और प्रेम और अहिंसा एक ही बात नहीं हैं। प्रेम तो जीवंत घटना है, अहिंसा व्याख्या है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। और प्रेम और अहिंसा दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है।
प्रेम तो पाजिटिव है। प्रेम तो विधायक संबंध है । और अहिंसा निगेटिव है, नकारात्मक बात है। प्रेम का अर्थ है, मैं दूसरे का मंगल चाहूं, दूसरे का कल्याण चाहूं, दूसरे के जीवन में आनंद बनूं, दूसरे के मार्ग पर फूल बिछाऊं । अहिंसा का मतलब है, मैं दूसरे का दुख न करूं, दूसरे को दुख न दूं। दूसरे को दुख न दूं, तो अहिंसा पूरी हो जाती है, प्रेम पूरा नहीं होता । प्रेम जब तक दूसरे को सुख न दे सके तब तक चुप नहीं बैठ सकता । प्रेम दूसरे के रास्ते पर फूल बिछाता है। अहिंसा केवल दूसरे के रास्ते पर कांटे न बिछाऊं, इतने भर तक जाती है। अहिंसा कहती है, दूसरे के रास्ते पर कांटे मत बिछाना । लेकिन अगर दूसरे के रास्ते पर कांटे बिछे हों, तो अहिंसा का इससे कोई संबंध नहीं कि उनको तुम बीनना कि मत बीनना ।
अगर दूसरे का रास्ता खाली हो और तुम्हारे हाथ में फूल हों, तो अहिंसा का इससे कोई संबंध नहीं कि तुम उसके रास्ते पर फूल रखना कि नहीं रखना । अहिंसा निगेटिव बात है। मैं दूसरे को दुख न दूं बस इतना पर्याप्त है। इसके आगे अहिंसा की प्रेरणा नहीं है । लेकिन प्रेम की प्रेरणा अनंत है। दूसरे के रास्ते पर कांटे न बिछाऊं, यह तो है ही । दूसरे के रास्ते पर बिछे कांटे उठाऊं, यह भी है। लेकिन दूसरे के रास्ते पर कांटे न हों, यह भी पर्याप्त नहीं है। दूसरे के रास्ते पर फूल भी बिछने चाहिए, यह भी जरूरी है।
प्रेम में तो अहिंसा सम्मिलित है। प्रेम का पहला चरण अहिंसा है। दूसरे के रास्ते पर कांटे न बिछाऊं। दूसरे को दुख न दूं । तो प्रेम के बड़े विस्तार में अहिंसा तो मौजूद है। लेकिन अहिंसा का विस्तार बहुत संकीर्ण है, उसमें पूरा प्रेम मौजूद नहीं होता।
महावीर के जीवन में है प्रेम और महावीर के अनुयायियों ने पकड़ रखी है अहिंसा । तो फिर अहिंसा इस तरह के रास्ते पकड़ लेती है : पानी छान कर पीऊं, रात खाना न खाऊं, मांस न खाऊं; बस इस तरह की शक्ल पकड़ लेती है। यह निगेटिव है तो पकड़ेगी। अगर महावीर सिर्फ अहिंसक थे, कोई मूल्य की बात नहीं रह जाती फिर । महावीर अहिंसक नहीं, महावीर एक महाप्रेमी हैं। लेकिन महावीर के प्रेम को अगर हम समझेंगे, तो हमारे जीवन में क्रांति हुए बिना नहीं हो सकता। हमें जीवन को बदल लेना पड़ेगा।
प्रेम जीवन की बदलाहट की सबसे बड़ी कीमिया है, और प्रेम जीवन का सबसे बड़ा दांव है, और प्रेम जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन अहिंसा कोई दांव नहीं है। अहिंसा कोई चुनौती नहीं है। आपकी जिंदगी को बदलने की कोई खास जरूरत नहीं है । आप एक नकारात्मक रुख ले लें, बस काफी है। अगर एक रास्ते पर एक आदमी गिर पड़ा और आप उस रास्ते से गुजर रहे हैं, तो अगर आप प्रेमी हैं तो आपको उस आदमी को उठाना पड़ेगा और अगर आप अहिंसक हैं तो आपको कोई संबंध नहीं है, कोई प्रयोजन नहीं है । आपने गिराया नहीं है, आपका कोई वास्ता नहीं है। प्रेम की तो अदभुत पुकार है आपसे, इसलिए प्रेम का कृत्य कभी पूरा नहीं होता, हमेशा अधूरा रहता है; और शेष रह जाता है, और शेष रह जाता है करने को । प्रेमी हमेशा अनुभव करता है कि जितना मुझे करना था वह मैं नहीं कर पाया हूं, जो मैंने किया वह ना- कुछ है, जो नहीं किया वह बहुत कुछ है।
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