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________________ एक आदमी समुद्र में यात्रा करता था। तूफान आया, आंधी आई और उसकी नाव डगमगाने लगी। वह करोड़ों रुपये की संपत्ति लेकर लौट रहा था प्रदेशों से। हीरे-जवाहरात थे, मोती-माणिक थे, वह संपत्ति डूब जाएगी। वह घबरा गया। उसने हाथ जोड़े, प्रार्थना की और परमात्मा से कहा, हे प्रभु! अगर मेरा जीवन बच जाए और मेरी नाव बच जाए, तो मेरा जो महल है राजधानी में, मैं उसे बेच कर गरीबों को बांट दूंगा। ऐसे तो वह धोखा दे रहा था और सस्ता सौदा कर रहा था। महल मुश्किल से पांच लाख रुपये का था और करोड़ों रुपये की संपत्ति थी उस नाव में। उसने सोचा कि भगवान को चकमा दे दे। और वह कोई बड़ा धोखा नहीं दे रहा था। आप चले जाते हैं कि हे भगवान, हम पांच आने का नारियल चढ़ा देंगे। मेरे लड़के की शादी करवा दो। मेरा मुकदमा जितवा दो। मेरी बीमारी दूर करवा दो। पांच आने तो अदालत का चपरासी भी रिश्वत लेने को तैयार नहीं होता। भगवान को बहुत सस्ते में...लेकिन फिर भी उसने तो, कोई इतना सस्ता नहीं था सौदा, पांच लाख का महल था उसका। पांच लाख और दस लाख के बीच में उसकी कीमत थी। संयोग की बात, नाव बच गई। कोई भगवान पांच लाख के लोभ में आ गया हो, ऐसा तो नहीं माना जा सकता। संयोग ही रहा होगा कि नाव बच गई, वह किनारे पर लग गया। किनारे पर लगते ही उसके प्राण संकट में पड़ गए। अब क्या करूं? पांच लाख का मकान गरीबों को बांट दूं? नींद हराम हो गई। सोचने लगा, इससे तो नाव डूब जाती तो अच्छा था। न होते हम, न रहता बांस न बजती बांसुरी। न यह चिंता आती, न यह परेशानी आती। और रात नींद खराब हो गई। मकान! और कहीं नहीं दिया गरीबों को तो कहीं भगवान नाराज न हो जाए। क्योंकि जो भगवान प्रशंसित होता है प्रार्थना से, उस भगवान से डर भी होता है कि भूल से नाराज हो जाए। उसने देखा कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता, नींद खराब हो गई, स्वास्थ्य खराब हो गया। ___ फिर वह गांव के धर्म-गुरु के पास गया। क्योंकि ऐसे मामलों में धर्मगुरु ही व्याख्या कर सकते हैं ठीक-ठीक कि क्या किया जाए। उनसे ज्यादा कनिंग, उनसे ज्यादा चालाक जमीन पर कोई दूसरा आदमी नहीं है। क्योंकि उनसे ज्यादा अनजान धंधा कोई करता ही नहीं। बाकी सब धंधे पार्थिव हैं, वे परमात्मा का धंधा करते हैं। वह बड़ी अंधेरी अज्ञात दुनिया का धंधा है। वह दुकान ऐसी है कि दिखाई नहीं पड़ती। वहां बहुत चालाक और होशियार आदमी चाहिए। वे ऐसा सामान बेचते हैं जिसको हाथ में पकड़ा नहीं जा सकता, जिसको आंख से देखा नहीं जा सकता। और उसके बदले में ऐसा सामान लेते हैं जो हाथ में पकड़ा जा सकता है, आंख से देखा जा सकता है। उसने कहा धर्मगुरु के पास चले जाएं। वह धर्मगुरु के पास गया। धर्मगुरु ने कहा, क्या चिंता की बात! ऐसे मसले तो रोज शास्त्रों में आते रहते हैं, हम व्याख्या करते रहते हैं। व्याख्या करना हमारा धंधा है। उसने कान में व्याख्या बता दी। दूसरे दिन उस करोड़पति ने राजधानी में डुंडी पिटवा दी कि महल मुझे बेचना है, जिसको खरीदना हो सुबह आ जाए। सुबह उस महल को बहुत खरीदने वाले लोग उत्सुक थे, वे आ गए। महल के सामने जो स्तंभ था, स्मृति-स्तंभ, उसमें उसने एक बिल्ली बांध दी। और कहा कि पांच लाख रुपया बिल्ली के दाम और महल का दाम एक रुपया। 133
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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