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समझ लीजिए कि मैं सरलता से हंस रहा हूं, अब मेरा कोई अनुयायी पैदा हो जाए; हालांकि ऐसा पाप मैंने अब तक किया नहीं कि किसी को कहूं कि तुम मेरे अनुयायी हो, या मेरे शिष्य हो। हालांकि कई पागल मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि हमें अपना शिष्य बनाइए, हम तो पीछा छोड़ेंगे ही नहीं । हमको शिष्य बनाइए! ऐसे ही पागलों ने शायद महावीर और बुद्ध और सबका पीछा करके उनको पकड़ लिया होगा कि हम तो शिष्य बनेंगे।
अगर कोई अनुयायी देख ले कि मैं हंस रहा हूं और हंसना चाहिए, तो वह भी हंसेगा, लेकिन उसका हंसना पोज्ड होगा, साधक का हंसना होगा। वह भी मुस्कुराएगा; लेकिन वह मुस्कुराहट झूठी होगी, ऊपर से थोपी हुई होगी।
महावीर अत्यंत स्पांटेनिअस, सहज- स्फूर्त व्यक्तित्व हैं; जी रहे हैं, जैसा उन्हें आनंदपूर्ण मालूम हो रहा है । और हम उनके पीछे पकड़-पकड़ कर नियम खोज रहे हैं कि वे कैसे जी रहे हैं, क्या कर रहे हैं, क्या कर रहे हैं !
महमूद गजनी में था - सम्राट गजनी का । एक दिन सुबह निकल रहा है गजनी के रास्ते से, एक मजदूर एक बहुत बड़ी पत्थर की चट्टान को लेकर ढो रहा है। महमूद ने देखा कि यह चट्टान ले जा रहा है। उसका पसीना-पसीना चू रहा है। उसकी आंखों में आंसू हैं । बूढ़ा आदमी है, जर-जर देह उसकी कंपती है। न मालूम किस दीनता में, किस दुख में, चट्टान ढोनी पड़ रही है उसे किस मजबूरी में। महमूद अपने घोड़े पर है। उसने चिल्ला कर कहा कि ऐ मजदूर ! पत्थर को नीचे गिरा । गिरा दे इसी वक्त !
अब सम्राट ने आज्ञा दी, मजदूर ने पत्थर नीचे बीच सड़क पर गिरा दिया राजपथ पर | महमूद तो अपने घोड़े पर बैठ कर अपने घर चला गया। अब उस पत्थर को कौन हटाए, क्योंकि बादशाह ने पत्थर गिरवाया ! तो बादशाह के वजीर, अनुयायी, बादशाह के अधिकारी कहने लगे जरूर कोई मतलब होगा। जब पत्थर गिराया तो मतलब होना चाहिए, क्योंकि महमूद कोई नासमझ तो नहीं है। जरूर कोई राज है इसमें । पत्थर हटाना मत। पत्थर जहां गिराया गया था, वहीं पड़ा रहा।
अब महमूद पत्थर गिरवा कर भूल-भाल गया । वह तो कोई और बात थी, इतनी बात थी कि मजदूर इतना थका-मांदा मालूम पड़ता था, तो उसने कहा, गिरा दो ! वह तो अपने घर चला गया, बात खतम हो गई। अब वह पत्थर वहीं पड़ा रहा। एक साल बीत गया। रास्ते पर ट्रैफिक में दिक्कत होती है, निकलने में मुसीबत होती है, लेकिन पत्थर को हटाए कौन ? महमूद ने गिराया है ! महमूद से कहे कौन? उसकी विजडम पर, उसकी बुद्धिमत्ता पर शक कौन करे ? कोई महमूद से कुछ कहता नहीं, महमूद को कुछ पता नहीं । महमूद बीस साल जिंदा रहा और वह पत्थर वहीं पड़ा रहा।
महमूद मर गया । उसका लड़का गद्दी पर बैठा । वजीरों ने कहा, पत्थर के बाबत क्या किया जाए ? राजधानी में बड़ी तकलीफ है।
उसने कहा कि जिसको पिता ने किया था, मैं उसे कैसे इनकार कर सकता हूं? कोई राज होगा, कोई सीक्रेट होगा, कोई बात होगी। इतने बुद्धिमान आदमी थे ! नहीं, उनके प्रति सम्मान के कारण पत्थर नहीं हटाया जा सकता । पत्थर वहीं रहेगा।
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