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होगी। उसे पता नहीं कि वह अपने छोटे भाई को लिए हुए है। जहां प्रेम है, वहां कष्ट कहां! वहां आनंद है। छोटे भाई को ढो रही है, यह उसका आनंद है, यह ढोना नहीं है। यह प्रेम का कृत्य है, यह एक्ट ऑफ लव है।
महावीर जो कुछ कर रहे हैं, उसमें दुख नहीं है, वे सब आनंद के कृत्य हैं। यह सारा जीवन अपना है। यह सब अपना है। इस सारे जीवन पर, इस सारे जीवन की पीड़ा, इस सारे जीवन के दुख को दूर करने के लिए वे आतुर हैं। उनके प्राणों की प्यास है, एक करुणा है। वे कोई दुख नहीं झेल रहे हैं। यह उनका आनंद है। यह उनकी खुशी है। यह उनके जीवन का गीत है। यह उनका संगीत है।
लेकिन नहीं, हम ऐसा नहीं समझ पाते! यह हमें दिखाई नहीं पड़ता! हम तो अपनी कैटेगरीज में, हमारे अपने तौलने के ढांचे, अपने तराजू हैं, उन्हीं तराजू को लेकर पहुंच जाते हैं महावीर को तौलने! यह सोचते नहीं कि यह दुकान पर तौलने का तराजू महावीर को तौलने के काम नहीं आ सकता। और इसी तरह तौल-तौल कर हमने जीवन लिख लिया है। वह जीवन सब झूठा और फॉल्स है। उसका कोई मूल्य नहीं है। मूल्य है महावीर की अंतस-घटना का, आनंद का, दुख का नहीं। आनंद घटित हुआ है महावीर के जीवन में।
लेकिन आप जरा देखें। आप जरा सोचें। हमने अपने सब महापुरुषों की तस्वीरें, आंखें, चेहरे ऐसे बनाए हैं कि उनमें कहीं आनंद का भाव नहीं मालूम पड़ता! आपने कभी खयाल किया? क्रिश्चियन कहते हैं, जीसस क्राइस्ट नेवर लाफ्ड! ईसाई कहते हैं, जीसस क्राइस्ट कभी हंसे ही नहीं! सोच सकते हैं कभी? अगर जीसस क्राइस्ट नहीं हंसे तो दुनिया में कौन हंसा होगा! कौन बचा होगा दुनिया में, अगर जीसस क्राइस्ट नहीं हंसे! लेकिन क्यों, क्रिश्चियंस ऐसा क्यों कहते हैं? क्या बात है? वे सोचते हैं कि जो हंसता है, वह महापुरुष नहीं रह जाता, सामान्य आदमी हो जाता है। सामान्य आदमी हंसते हैं। वे यह नहीं सोच पाते कि सामान्य आदमी की हंसी और, महापुरुष की हंसी और। और सच में सामान्य आदमी झूठा हंसता है। उसकी हंसी झूठी है। भीतर रोता रहता है, बाहर हंसता है।
आप कभी सच में हंसे हैं? अगर जिंदगी में एक बार आपने सच में हंस लिया हो, आपको धर्म का रहस्य पता चल जाएगा। बड़ी अजीब बात कह रहा हूं आपसे। अगर आपने जिंदगी में एक बार सच में हंस लिया हो, तो आपको सामायिक का अनुभव हो जाएगा, ध्यान का अनुभव हो जाएगा। लेकिन हम कभी हंसे ही नहीं-भीतर रोते हैं, बाहर हंसते हैं। क्यों हंसते हैं बाहर? ताकि भीतर के रोने को छिपाए रखें, किसी को पता न चल जाए।
जितना दुखी आदमी होता है, उतना ही हंसता मालूम होता है।
दुख को छिपाने की तरकीब है। आमोद-प्रमोद में कौन जाता है? मनोरंजन करने कौन जाता है गांव के बाहर? सिनेमा में, मनोरंजनगृह में कौन प्रवेश करता है? जो दुखी है। दुनिया जितनी दुखी होती जाती है, उतने ही मनोरंजन के साधन ईजाद करने पड़ रहे हैं, क्योंकि दुखी आदमी को भुलाने की जरूरत है कि कहीं भूले। एक आदमी दुखी होता है। लोग कहते हैं, चलो ताश खेलें भाई; चलो गपशप करें, रेडियो सुनें, कुछ गपशप करें, कुछ हंसें। कुछ बातचीत करते हैं, ताकि वह हंसी में भूल जाए दुख को।
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