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आकर्षित होता है। जैसे कि सपनों में रूप नहीं देखे जा सकते। आंख बंद करके रूप नहीं देखे जा सकते। आंखें फोड़ ली; हाथ-पैर काट डाले हैं; जननेंद्रियां काट डाली हैं; पैरों में खीले ठोक लिए हैं; कमर में खीले ठोक लिए हैं; रेत पर, जलती रेत पर पड़े रहे हैं; कांटे बिछा कर लेटे रहे हैं; शरीर को कोड़े मारते रहे हैं!
कोड़े मारने वालों का एक संप्रदाय ही था पूरे यूरोप में। वह कोड़े मारने वालों का ही संप्रदाय कहलाता। उसका साधु यही करता था कि सुबह से उठ कर कोड़े मारना शुरू करता था नंगी देह पर, लहूलुहान हो जाता। जो साधु जितने ज्यादा कोड़े मार लेता, वह साधु गुरु हो जाता, बाकी साधु चेले हो जाते। जैसे कि जो साधु ज्यादा उपवास कर ले, वह आचार्य हो जाता है, बाकी चेले हो जाते हैं! अखबार में खबर छापते हैं कि फलां साधु ने इतने उपवास किए, इतने उपवास किए, इतने उपवास किए, वैसे ही उनके अखबारों में खबर छपती थी कि फलाने साधु ने अब तक क्लाइमेक्स पा ली है, अब तक आखिरी कोटि पा ली है, इतने कोड़े मार लेता है। सुबह से लहूलुहान कर लेते शरीर। लोग दर्शन करने आते और कहते कि महा-तपस्वी हैं। इन्वेंटिव थे बहुत! खूब खोजी हैं तरकीबें दुख पाने की!
लेकिन महावीर दुखवादी नहीं हैं। महावीर दुख की खोज में नहीं हैं। और इस सीक्रेट को, इस रहस्य को थोड़ा ठीक से समझ लेना जरूरी है, क्योंकि हमें ऐसा दिखाई पड़ता है कि महावीर दुख खोज रहे हैं। क्योंकि हम सुख के खोजी हैं, जो मैंने आपसे पहले कहा। सुख के खोजी को दिखाई पड़ता है, हम तो गद्दी ला रहे हैं घर की तरफ और एक आदमी गद्दी छोड़ कर बाहर जा रहा है। हमको लगता है, यह बेचारा बड़ा दुख खोज रहा है। लेकिन यह भी हो सकता है कि एक स्वस्थ शरीर को गद्दी सुख न दे। गद्दी के लिए बीमार शरीर चाहिए सुख पाने के लिए गद्दी में। स्वस्थ शरीर के लिए गद्दी जैसी चीज सख देने का कोई कारण नहीं रह जाती। स्वस्थ शरीर के लिए सुख मिलता है गहरी निद्रा से, गहरे वस्त्रों से नहीं। गहरे वस्त्रों का सुख वह खोजता है, जिसने गहरी निद्रा खो दी है। जब गहरी निद्रा नहीं रह जाती, तो सब्स्टीटयूट खोजना पडता है। तो गहरे वस्त्र खोजते हैं हम. बडी गही करते चले जाते हैं।
स्वस्थ आदमी को भख से आनंद मिलता है. बीमार आदमी को भोजन से। इन दोनों में फर्क समझ लेना। स्वस्थ आदमी को भूख लगती है, आनंद मिलता है भूख के कारण। जो भी खाता है, रसपूर्ण हो जाता है, स्वादपूर्ण हो जाता है। बीमार आदमी को भूख तो होती नहीं, स्वाद तो भोजन में आ नहीं सकता, तो फिर नमक-मिर्च-मसाले खोजता है। और उनके द्वारा स्वाद पैदा करने की कोशिश करता है। तो जब कोई स्वस्थ आदमी रूखी रोटी खाकर आनंदित दिखता है, तो वह नमक-मिर्च वाला आदमी बेचारा सोचता है, कितना दुख झेल रहा है। उसे पता नहीं कि मूर्ख! दुख तू झेल रहा है। वह आदमी सुख, पूरा सुख उठा रहा है। हमारी सारी दृष्टि...।।
महावीर त्याग रहे हैं ज्ञान के कारण। और महावीर जो जीवन जी रहे हैं, उसमें उन्हें कोई दुख नहीं है। महावीर इतने नासमझ नहीं हैं कि दुख का जीवन जीएं; वे परम आनंद का जीवन जी रहे हैं। उन्हें नग्न खड़े होने में आनंद आ रहा होगा।
और आप जानते हैं कि अगर बच्चों की आदतें न बिगाड़ी जाएं तो बच्चे बामुश्किल कपड़े पहनने को राजी होते हैं। कपड़े पहनना फोर्ल्ड हैबिट है, आदमी के ऊपर जबरदस्ती थोपी
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